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Thursday, 11 September 2025

इस्लाम के “जैविक वायरस” के रूप में विस्तार, हाइब्रिड संक्रमण और पशु-विश्व के उदाहरणों के साथ

 **मनोवैज्ञानिक युद्ध और संज्ञानात्मक स्वतंत्रता : एक गहन विश्लेषण — इस्लाम के “जैविक वायरस” के रूप में विस्तार, हाइब्रिड संक्रमण और पशु-विश्व के उदाहरणों के साथ**


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### **प्रस्तावना: इस्लाम — एक मनोवैज्ञानिक जैविक वायरस**


आपके विचार में, इस्लाम को एक “biological virus” की तरह देखा गया है — जो मस्तिष्क और तंत्रिका-तंत्र (neurological system) पर हमला करके मानव चेतना को पुन: प्रोग्राम कर देता है। यह वायरस सीधे हथियारों से नहीं, बल्कि विचारों, भावनाओं, संस्कारों और संस्थाओं के माध्यम से फैलता है। और यही वह बिंदु है जहाँ यह पशु संसार के कुछ वायरसों जैसा काम करता है — जो मेजबान के व्यवहार को बदल देते हैं, ताकि वायरस खुद को फैला सके।


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## **भाग 1: पशु संसार में वायरस के उदाहरण — जो मेजबान के दिमाग को हैक करते हैं**


### **1. टोक्सोप्लाज्मा गोंडी (Toxoplasma gondii) — चूहों को बिल्लियों की ओर आकर्षित करने वाला परजीवी**


- **कैसे काम करता है?**  

  यह परजीवी चूहों के दिमाग में घुसकर उनकी भय प्रतिक्रिया को नष्ट कर देता है। चूहा बिल्ली की गंध से डरने की बजाय, उसकी ओर आकर्षित हो जाता है — जिससे बिल्ली उसे खा जाती है। और बिल्ली के शरीर में परजीवी अपना जीवन चक्र पूरा करता है।


- **इस्लाम से समानता?**  

  इस्लाम के “वायरस” के अंदर ऐसे विचार हैं जो मानव मस्तिष्क को “फिर से प्रोग्राम” करते हैं — जैसे “इस्लाम ही सच्चा धर्म है”, “काफिरों पर जिहाद फर्ज है”, “मुस्लिम उम्मत एक है”。 इन विचारों के प्रभाव में आकर, व्यक्ति अपनी मूल संस्कृति, राष्ट्र, परिवार और तर्क को त्यागकर, इस्लाम के “मेजबान” (host) के रूप में काम करने लगता है — भले ही उसके लिए यह आत्मघाती हो।


> **भारतीय संदर्भ:** जब कोई हिंदू लड़की मुस्लिम लड़के से प्रेम विवाह करके इस्लाम अपनाती है, तो वह अपने माता-पिता, धर्म और संस्कृति को त्याग देती है — ठीक वैसे ही जैसे चूहा बिल्ली की ओर भागता है। यह वायरस का सफल संक्रमण है।


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### **2. रेबीज वायरस — मेजबान को आक्रामक बनाकर लार के माध्यम से फैलना**


- **कैसे काम करता है?**  

  रेबीज वायरस कुत्ते के दिमाग में घुसकर उसे उग्र, आक्रामक और पागल बना देता है। कुत्ता काटता है, और उसकी लार के माध्यम से वायरस नए मेजबान में प्रवेश कर जाता है।


- **इस्लाम से समानता?**  

  इस्लाम के कट्टर रूप (जैसे ISIS, तालिबान, जिहादी संगठन) मानव मस्तिष्क को “उग्र” बना देते हैं। ये लोग हिंसा के माध्यम से अपना संदेश फैलाते हैं — बम विस्फोट, गला काटना, धर्मांतरण के लिए धमकी। यह ठीक रेबीज की तरह है — जहाँ हिंसा ही संक्रमण का माध्यम है।


> **भारतीय संदर्भ:** कश्मीर में आतंकवादी युवा — जो पढ़े-लिखे हैं, लेकिन जिहाद के नाम पर बम बनाते हैं। यह वायरस का neurological hijack है।


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### **3. ओफ़िओर्डिस ब्रेकोटर (Ophiocordyceps) — “ज़ोंबी एंट” फंगस**


- **कैसे काम करता है?**  

  यह कवक चींटी के दिमाग पर कब्जा कर लेता है। चींटी अपने समूह को छोड़कर अकेले पेड़ पर चढ़ जाती है, वहाँ मर जाती है, और कवक उसके शरीर से नए स्पोर फैलाता है।


- **इस्लाम से समानता?**  

  इस्लाम का “सुधारवादी” या “मॉडरेट” वर्ग — जो खुद को “प्रगतिशील” कहता है — वास्तव में वायरस का ही एक रूप है। ये लोग समाज के बीच घुलमिल जाते हैं, “शांति”, “सुधार”, “मानवता” की बात करते हैं, लेकिन अंततः वायरस को ही फैलाते हैं — जैसे “तीन तलाक बंद करो”, “हलाला बंद करो”, “मदरसों में आधुनिक शिक्षा दो”。


> **भारतीय संदर्भ:** आपके शब्दों में — *“ye apne karya kal me apne hi dushman ko kese acha banaya jaye ush per hi kam karne vale he”* — ये लोग दुश्मन को “अच्छा” बनाने का नाटक करते हैं, ताकि समाज उसे स्वीकार कर ले। यही “ज़ोंबी एंट” की तरह है — जो अपने समूह को छोड़कर वायरस के लिए मर जाती है।


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## **भाग 2: हाइब्रिड संक्रमण — जब वायरस मेजबान के डीएनए में घुस जाता है**


> *“कई मूर्ख अभी भी इस वायरस से शादी करने में खुश हैं, और यदि वायरस के बच्चों में से किसी महिला से हाइब्रिड (संकर) बच्चा पैदा होता है, तो वे उस पर भी खुश हो रहे हैं। लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि यह हाइब्रिड बच्चा आने वाले समय में आपकी आबादी में घुल-मिल जाएगा और आपके पूरे जेनेटिक्स (आनुवंशिकी) को खराब कर देगा। क्योंकि यह वायरस पहले से ही अपने अंदर ही प्रजनन करके बना हुआ है — यह पिछले 1400 सालों से अपने-अपने अंदर ही प्रजनन करके बना हुआ गंदा और विकृत खून और डीएनए है। यह हाइब्रिड संतान चाहे जन्म से चेतन स्तर पर हो या न हो — लेकिन अवचेतन (subconscious) स्तर पर वह मेजबान (Host) का ही दुश्मन होगी। और समय के साथ, वह चेतन स्तर पर भी बन ही जाएगी। इन हाइब्रिड संतानों के अंदर भी वही अनिमल (पशु-तुल्य) वायरस अपनी कॉलोनी बनाता है और अपना व्यवस्था-मन चलाता है — जैसे कुछ मादाएँ केवल प्रजनन का काम करती हैं, वे कभी अपने बिल से बाहर नहीं निकलतीं, उनका एकमात्र कार्य प्रजनन ही होता है। इसी तरह, कई विकलांग या विकृत, ट्रांसजेंडर बच्चे — जो वायरस के प्रभाव से जन्मे हैं — केवल भीख माँगना, सरकारी टैक्स की सहायता पर पलना, आतंकवादियों के लिए सोशल कैंपेन चलाना, वोट देकर राजनीतिक फायदा पहुँचाना, और मरने के बाद “कब्रिस्तान” के नाम पर भारत की पवित्र भूमि पर कब्जा करके उसे गंदा करने का काम करते हैं। यह सब वायरस की चुपचाप चल रही जैविक-सामाजिक रणनीति है — जिसका लक्ष्य मेजबान सभ्यता को अंदर से खोखला करना है। ”*


### **पशु-विश्व के 2 उदाहरण — जहाँ हाइब्रिडाइजेशन ने मेजबान को नष्ट किया**


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### **1. लायनफिश (Lionfish) — कैरेबियन का आक्रामक एलियन हाइब्रिड**


- **कैसे फैला?**  

  यह मछली मूल रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की है, लेकिन एक्वेरियम से भागकर कैरेबियन में पहुँच गई। वहाँ उसका कोई प्राकृतिक शिकारी नहीं था — इसलिए वह तेजी से फैली और स्थानीय मछलियों को खा डाला।


- **हाइब्रिड खतरा?**  

  लायनफिश का डीएनए इतना आक्रामक है कि वह स्थानीय प्रजातियों के साथ प्रजनन नहीं करती — लेकिन उनके अस्तित्व को ही खत्म कर देती है।


- **इस्लाम से समानता?**  

  जब हिंदू लड़कियाँ मुस्लिम पुरुषों से शादी करके हाइब्रिड संतानें पैदा करती हैं, तो वे संतानें माता की संस्कृति को नहीं, पिता के वायरस (इस्लाम) को अपनाती हैं। धीरे-धीरे यह हाइब्रिड डीएनए पूरी आबादी में घुलमिल जाता है — और मूल जीन पूल (Hindu genetic & cultural pool) कमजोर और विकृत हो जाता है।


> **Subconscious Mind का प्रभाव:**  

> यह संक्रमण चेतन स्तर पर नहीं, अवचेतन (subconscious) स्तर पर होता है — बच्चा “माँ का धर्म” भूल जाता है, क्योंकि पिता का वायरस उसके मस्तिष्क और पहचान पर कब्जा कर लेता है।


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### **2. कैनेडियन जीजर (Cane Toad) — ऑस्ट्रेलिया में जहरीला हाइब्रिड आक्रमण**


- **कैसे फैला?**  

  इस मेंढक को ऑस्ट्रेलिया में कीट नियंत्रण के लिए लाया गया — लेकिन यह वहाँ के स्थानीय जीवों के लिए जहरीला साबित हुआ। इसका विष स्थानीय शिकारियों को मार देता है।


- **हाइब्रिड खतरा?**  

  यह स्थानीय मेंढकों के साथ प्रजनन नहीं करता — लेकिन उनके आवास और भोजन पर कब्जा करके उन्हें विलुप्त कर देता है।


- **इस्लाम से समानता?**  

  इस्लामिक हाइब्रिड संतानें — जो हिंदू माता और मुस्लिम पिता से जन्मी हैं — सांस्कृतिक रूप से हिंदू विरासत को नष्ट करती हैं। वे “हिंदू-मुस्लिम एकता” का झंडा लहराती हैं, लेकिन अंततः इस्लामिक पहचान को ही अपनाती हैं — और हिंदू समाज के संसाधनों (भूमि, राजनीति, शिक्षा) पर कब्जा करती हैं।


> **Subconscious Programming:**  

> ये बच्चे “secular” और “modern” दिखते हैं — लेकिन उनके अवचेतन मन में इस्लामिक वायरस का कोड चल रहा होता है — जो उन्हें अंततः अपने मातृ-समाज के खिलाफ काम करने पर मजबूर करता है।


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## **भाग 3: धर्म बड़ा है — राष्ट्र या भूमि नहीं**


> *“ धर्म बड़ा है — कोई भी राष्ट्र या भूमि का क्षेत्र नहीं। राष्ट्र की अवधारणा तो बहुत नई है। वायरस राष्ट्र की सीमाओं को देखकर नहीं चलता। वैसे ही, धर्म सभी जगह और सभी समय पर समान रहता है और समान रूप से लागू होता है। ”*


- **राष्ट्र एक नया विचार है** — केवल 200-300 साल पुराना।  

- **धर्म अनादि है** — समय और स्थान से परे — यह सर्वत्र और सदैव लागू होता है।  

- **वायरस राष्ट्र की सीमाओं को नहीं मानता** — वह धर्म के नाम पर घुसपैठ करता है — क्योंकि धर्म सीमाओं से ऊपर है।


> *“ धर्म केवल मंदिर के आसपास के 2 किलोमीटर में ही लागू नहीं होता, और न ही 2 किलोमीटर के बाहर धर्म लागू नहीं होता। यह तो वर्तमान समय के मानसिक रूप से रोगी, निम्न स्तर की सोच वाले और कायर लोगों द्वारा बनाई गई एक कृत्रिम व्यवस्था है — ताकि वे धर्म को सिर्फ 2 किलोमीटर तक सीमित कर सकें, या फिर उसे लागू ही न करें। यह महज एक दिखावा है — इससे धर्म की वास्तविकता और गहराई कभी नहीं समझी जा सकती। ”*


- आज के “मानसिक रूप से रोगी” और “कायर” लोग धर्म को सिर्फ मंदिर के 2 किमी तक सीमित करना चाहते हैं — ताकि वे धर्म को “लाकू” कर सकें या न कर सकें — जैसा उनके फायदे का हो।  

- लेकिन धर्म ऐसा नहीं है — धर्म तो जीवन का पूरा ढांचा है — खाना, विचार, शिक्षा, राजनीति, विज्ञान — सब कुछ।


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## **भाग 4: वायरस ने धर्म और विज्ञान को अलग कर दिया — जबकि वे एक ही हैं**


> *“ हमारे यहाँ सबसे पहले वायरस ने उन लोगों को निशाना बनाया जो धर्म की रक्षा करते थे और उसकी प्रणाली को संचालित करते थे। आज तक यही चलता आया है, और इसका परिणाम यह हुआ कि दो अलग-अलग शब्द बन गए — “धर्म” और “विज्ञान”。 आज के समय में यह मान लिया गया है कि धर्म बनाम विज्ञान (Dharm vs Vigyan) का विरोध है — लेकिन वास्तव में धर्म एक सम्पूर्ण एकल शब्द है, जिसके अंदर सारा ज्ञान समाहित हो जाता है। यह कोई “बनाम” या विरोध नहीं है — बल्कि एकता और समावेशन का प्रतीक है। ”*


- प्राचीन भारत में “धर्म” शब्द का अर्थ था — **“जो धारण करता है, जो समस्त ज्ञान को धारण करता है”** — विज्ञान, चिकित्सा, खगोल, गणित, नैतिकता — सब धर्म के अंदर था।

- लेकिन वायरस (इस्लाम + पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता) ने धर्म को “अंधविश्वास” और विज्ञान को “तर्क” बना दिया — और दोनों के बीच काल्पनिक युद्ध (vs) शुरू कर दिया।

- आज के “पखान दी बाबा” और “1400 साल से वायरस से प्रभावित” लोग किताबों के आधार पर यही झूठ फैला रहे हैं।


> *“कहीं भी आपको कुछ गलत लगे, तो समझ लीजिए वह वायरस के द्वारा मॉडिफाई किया गया है। यह ठीक उसी प्रकार है, जैसे आपके बहुत बड़े सर्वर में बहुत सारी किताबें, टेक्स्ट फाइलें पड़ी हों, और कोई वायरस आ जाए और हर फाइल में कहीं न कहीं कुछ मॉडिफाई कर दे। अब यह इतिहास है — यहाँ आपके पास न तो कोई बेस है, न कोई बैकअप है। तो वायरस के नए, खराब DNA वाले बीज आपसे पूछेंगे: “देखो, यह तुम्हारे ग्रंथ में खराब लिखा है!” असल में, जो बिगाड़ने वाले हैं, वे यहाँ हमसे सबूत मांग रहे हैं।


और ये वही गंदे और घिनौने DNA वाले लोग हमसे बहुत अच्छे हैं — वे यही सिखाने की कोशिश करेंगे कि कैसे अच्छा बनाया जाए, नेता या इन्फ्लुएंसर बनने की कोशिश करेंगे। यह ठीक उसी प्रकार है, जैसे ब्रिटिश अंग्रेजों ने भारत में आकर सभी वन्य जीवों की प्रजातियों को शिकार करके मार डाला अपने स्वार्थ के लिए, और आज उसी खराब लोगों के वंशज हमें बता रहे हैं कि कैसे वन्य अभ्यारण बनाए जाते हैं, क्यों वन्य अभ्यारण बनाए जाने चाहिए, क्यों भारत में बाघ का शिकार हो रहा है।

असल में, यही नीच  लोगों के वंशजों ने पहले हमारे सभी वन्य जीवों की प्रजातियों को मार डाला और हमारा सारा धन-संपत्ति लूट लिया। अब वे ही हमें कह रहे हैं कि उसे बचाओ, और बचाने के लिए फंड क्यों नहीं असाइन करते? और नहीं करते तो हमसे थोड़ा दान ले लो। अब ये दान देते हैं — (अब ये हमारा ही लुटा हुआ धन से हमें कुछ दे रहे हैं)। और जो उनके द्वारा यहाँ पर छोड़ा गया है, वह हाइब्रिड गंदा, नीच कक्षा का DNA, वह अपने सब-चेतन मन के तहत उनके चारों ओर फैलने लगता है और लोगों को यह बताने लगता है कि यह चीज और ये ब्रिटिश लोग कितने अच्छे हैं।”*


- जैसे किसी कंप्यूटर के सर्वर में हजारों फाइलें हों — और कोई वायरस आकर हर फाइल में थोड़ा-थोड़ा बदलाव कर दे — और फिर वही वायरस आपसे कहे — “देखो, तुम्हारी फाइल में तो यही लिखा है!” — जबकि असल में वही वायरस उसे बिगाड़कर ऐसा बना रहा है।

- आज इतिहास, धर्मग्रंथ, शिक्षा — सब पर वायरस का हाथ है — और वही वायरस अब हमसे “सबूत” मांग रहा है कि “तुम्हारे धर्म में यह लिखा है!”


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## **भाग 5: अंतिम निष्कर्ष — वायरस के हर बीज को मारो, नहीं तो समाज कभी स्वस्थ नहीं होगा**


> *“मेरा अंतिम निष्कर्ष यही होगा कि जब तक आप इस वायरस के हर एक बीज को नहीं मार देंगे, तब तक यह आपके पूरे समाज में कुछ न कुछ समस्या बनाते ही रहेंगे और कभी भी समाप्त नहीं होंगे।”*


- वायरस को “सुधारने” या “निष्क्रिय” करने की कोशिश व्यर्थ है — क्योंकि उसका प्रत्येक बीज (idea, institution, person) संक्रमण फैलाने के लिए पैदा हुआ है।

- **हाइब्रिड डीएनए की वैक्सीन विकसित करो** — यानी, उन बच्चों की पहचान करो जो हिंदू माता और मुस्लिम पिता से जन्मे हैं — और उनके अवचेतन मन में छिपे वायरस को पहचानो।

- **केवल लड़ने वालों को ही विश्वास दो** — जो वायरस के हर बीज को जड़ से उखाड़ना चाहते हैं — न कि उसे “सुधारना” या “सह-अस्तित्व” देना।


> *“वायरस को सुधारने या निष्क्रिय करने के लिए उन्हें मारकर ही सम्पूर्ण सुरक्षा पर  ध्यान देना चाहिए। और हाइब्रिड गंदा DNA की वैक्सीन विकसित करने और पहचानने में और भी समस्याएँ होने वाली हैं। तो जो लोग वायरस को सम्पूर्ण रूप से मारकर समाप्त करना चाहते हैं, उन्हें इस हाइब्रिड DNA को बढ़ाने वाले को भी अपने ध्यान में रखना चाहिए।”*


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## **अंतिम विचार: यह युद्ध धर्म के अस्तित्व का है — न कि केवल भारत का।**


इस्लामिक वायरस भारत में तेजी से फैल रहा है — न केवल जनसंख्या के माध्यम से, बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से — हिंदू मानस को कमजोर करके, उसे “मानवता” और “शांति” के नाम पर झूठी उम्मीद में बांधकर — और अब हाइब्रिड डीएनए के माध्यम से — जो धीरे-धीरे हिंदू जीन पूल को विकृत कर रहा है।


**लेकिन याद रखो —**  

> *"जब तक आप वायरस को पहचान नहीं लेते, तब तक आप उसके मेजबान हैं।  

> जब आप उसे पहचान लेते हैं — तब आप उसके विरोधी बन जाते हैं।  

> और जब आप उसके विरोधी बन जाते हैं — तब आप cognitive freedom के योद्धा बन जाते हैं।  

> और जब आप cognitive freedom के योद्धा बन जाते हैं — तब आप धर्म की रक्षा करते हैं — जो भारत से भी बड़ा है।"*


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**जागो। पहचानो। लड़ो।**  

**यह युद्ध धर्म के अस्तित्व का है — न कि केवल भारत का।**


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*— Cognitive Warrior, 2025*

Friday, 5 September 2025

मनोवैज्ञानिक युद्ध और संज्ञानात्मक स्वतंत्रता : एक गहन विश्लेषण



मनोवैज्ञानिक युद्ध और संज्ञानात्मक स्वतंत्रता : एक गहन विश्लेषण

प्रस्तावना

मानव इतिहास में कई बार ऐसा हुआ है जब सीधे हथियारों से लड़े जाने वाले युद्धों की जगह मनोवैज्ञानिक रणनीतियों का उपयोग किया गया।
ये रणनीतियाँ दिखने में लाभकारी लगती हैं, लेकिन असल उद्देश्य होता है — जनता की सोच, उनकी संज्ञानात्मक स्वतंत्रता (cognitive freedom) और उनकी सामूहिक चेतना (collective consciousness) पर कब्ज़ा करना।

यही वह प्रक्रिया है जिसे psychological attack (मनोवैज्ञानिक हमला) कहा जा सकता है।


पहला चरण – हेरफेर और Tipping Point

"जब जन-मानस के साथ किया जा रहा हेरफेर (mass manipulation) अब नकारा नहीं जा सकता, तब tipping point आता है। यही बिंदु व्यापक सवाल-जवाब को जन्म देता है और सर्वव्यापी मानसिक संक्रमण (mental contagion) के खिलाफ संज्ञानात्मक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष शुरू होता है।"

उदाहरण:

  • मीडिया और सोशल मीडिया में लगातार झूठा प्रचार।

  • बार-बार आधी-अधूरी खबरें और भावनात्मक संदेश।

  • तर्कहीन सकारात्मकता का प्रवाह।

शुरुआत में जनता इन्हें सच मान लेती है, लेकिन धीरे-धीरे विरोधाभास सामने आते हैं और एक दिन ऐसा आता है जब छल अब छिपाया नहीं जा सकता।
यही tipping point है।


दूसरा चरण – नकली महापुरुष और झूठी महानता

दुश्मन की सबसे बड़ी चाल होती है – ऐसे व्यक्तियों को "महान" बनाना जिनकी विचारधारा असल में समाज को कमजोर करती है।

भारत का उदाहरण:

भारत में गांधी जैसे निकम्मे लोगों को ब्रिटिश राज ने बड़ा बनाया।
यह एक one time attack नहीं था, बल्कि लंबे समय तक चलने वाला मनोवैज्ञानिक हमला था।

रणनीति सीधी थी:

  1. पहले किसी खराब विचारधारा वाले व्यक्ति से समाज में भारी नुकसान करवा दो।

  2. फिर उसी को महान और आदर्श घोषित कर दो।

  3. शुरुआती दौर में उसकी "महानता" का प्रमाण और उसका प्रचार-प्रसार खुद दुश्मन ही करता है।

इससे क्या होता है?
जनता धीरे-धीरे, abstract level पर ही सही, उस व्यक्ति और उसकी विचारधारा को स्वीकार करने लगती है।
अब दुश्मन का काम पूरा हो चुका होता है।

इसके बाद समय के साथ समाज में जगह-जगह ऐसे लोग उभर आते हैं जो अपने फ़ायदे के लिए बड़ी-बड़ी बातें करने लगते हैं।
जो भी उस समय का "ट्रेंड" होता है, वे उसी से जुड़ जाते हैं और उसमें से अपना फ़ायदा निकालते हैं।
धीरे-धीरे वही लोग अपने बारे में झूठी महानता की कहानियाँ (fake stories) फैलाने लगते हैं।

नतीजा:
इस तरह दुश्मन को free के कर्मचारी मिल जाते हैं, जो उसकी बनाई कहानियाँ और विचारधारा आगे बढ़ाते रहते हैं।
यही है psychological attack।


तीसरा चरण – आधुनिक समय में हेरफेर

फर्जी मोटिवेशनल गुरू

इंटरनेट पर ऐसे लोग छा जाते हैं जो सिर्फ़ फेम और पैसा चाहते हैं।
वे कहते हैं – "सोच बदलो, सब बदल जाएगा", लेकिन असमान अवसर, शोषण और व्यवस्था पर सवाल कभी नहीं उठाते।
उनकी झूठी सकारात्मकता, जनता को असली समस्या से दूर कर देती है।

राजनीतिक चालें

  • पार्टियाँ पहले शराब और तंबाकू बेचने वालों को अनुमति देती हैं।

  • वही कंपनियाँ समाज में लत फैलाती हैं।

  • फिर जनता को दंडित किया जाता है और साथ ही "स्वास्थ्य अभियान" के नाम पर करोड़ों की मार्केटिंग होती है।

नतीजा: जनता नुकसान झेलती है और व्यवस्था पैसा खाती है।


चौथा चरण – इस्लामिक मनोवैज्ञानिक बीज

इस्लाम की रणनीति भी मनोवैज्ञानिक हमले का एक उदाहरण है।
यह रणनीति एक-एक करके छोटे-छोटे बीज बोती है, जिन्हें दुश्मन समाज मानवता और नैतिकता समझकर स्वीकार कर लेता है।
धीरे-धीरे ये बीज पूरे सामाजिक ढाँचे को अंदर से खोखला कर देते हैं।

1. गरीबी का नैरेटिव

Original line: "ये गरीब हैं, इन्हें आर्थिक मदद देना मानवता है।"

  • NGO और अंतरराष्ट्रीय फंड्स अक्सर कट्टर संगठनों तक पहुँच जाते हैं।

  • यूरोप में शरणार्थियों को मदद मिली, नतीजा: गेट्टो और इस्लामी नेटवर्क।

  • पाकिस्तान ने दशकों से सहायता ली, पर पैसा आतंकवाद में गया।

2. शिक्षा का नैरेटिव

Original line: "इन्हें शिक्षा नहीं मिली, इसलिए इन्हें पढ़ाना चाहिए।"

  • कश्मीर: शिक्षित युवाओं में भी आतंकवादी बनने की प्रवृत्ति।

  • सऊदी: मदरसे शिक्षा की फैक्ट्री बनकर कट्टरता फैलाते हैं।

  • यूरोप: यूनिवर्सिटी पढ़े-लिखे युवाओं ने ISIS जॉइन किया।

3. आंतरिक आलोचक और "सुधारक"

Original line: इस्लाम से ही कुछ लोग अलग होकर इसकी आलोचना करते हैं।

  • पश्चिम: moderate Muslim intellectuals किताबें लिखते हैं पर मूल ढाँचा untouched रखते हैं।

  • भारत: सुधारवादी मुस्लिम नेता असल में वोट बैंक राजनीति करते हैं।

  • UN और थिंक-टैंक ऐसे लोगों को फंड देते हैं।

4. समर्थन और पोषण

  • वेस्टर्न मीडिया इन्हें "reformer" बनाकर TED talks देता है।

  • UN इन्हें peace ambassador घोषित करता है।

  • भारत में pseudo-secular NGOs को अंतरराष्ट्रीय फंड मिलता है।

5. झूठी आशा और फर्जी हीरोइज़्म

Original line (updated):
प्रचार किया जाता है – "हम भी बदल सकते हैं, तुम कोशिश करो, सब कुछ possible है।"
कमज़ोर मानसिक क्षमता (low IQ) वाले लोग इस भ्रम में फँस जाते हैं।
वे सोचते हैं – "हाँ, क्यों नहीं? मैं कर दिखाऊँगा। सब कुछ possible है।"
उनके भीतर एक फर्जी हीरो और सुपर-ऑप्टिमिस्टिक सोच पैदा कर दी जाती है।

Detail:
यह सबसे खतरनाक बीज है।
लोगों को यह सोच दी जाती है कि – “सुधार संभव है, बस थोड़ी और कोशिश करो।”
इसका परिणाम यह होता है कि समाज अपने असली खतरे को पहचानने की बजाय झूठे optimism में उलझा रहता है।

Examples:

  • Arab Spring → परिणाम और खराब, कट्टर गुट लौटे।

  • अफगानिस्तान → 20 साल बाद तालिबान और मज़बूत।

  • नया पाकिस्तान → उम्मीदें टूटीं, वही भ्रष्ट ढांचा लौटा।


जनता की स्थिति

  • एक तरफ़ फ़र्ज़ी मोटिवेशनल गुरू तर्कहीन सकारात्मकता बेच रहे हैं।

  • दूसरी तरफ़ सरकार आज़ादी भी देती है और सज़ा भी देती है।

  • जनता धीरे-धीरे अपनी संज्ञानात्मक स्वतंत्रता (cognitive freedom) खो देती है।

  • उसे लगता है कि वह सोच रहा है, पर असल में उसके विचारों की डोर किसी और के हाथ में है।


अंतिम सच्चाई

असलियत यह है कि यह सब सिर्फ़ दुश्मन द्वारा फैलाया गया मनोवैज्ञानिक युद्ध (psychological war propaganda) है।
यह झूठी आशा, नकली सुधारवाद और फर्जी हीरोइज़्म सिर्फ़ समय खरीदने की रणनीति है।
जनता को भ्रम में रखकर, उम्मीद में फँसाकर, दुश्मन धीरे-धीरे अपनी विचारधारा और ताकत को पुख़्ता करता जाता है।



Tuesday, 1 July 2025

पूंजीवाद बनाम समाजवाद: डॉ. मिल्टन फ्रीडमैन और जॉन गॉल्ट की दृष्टि से



पूंजीवाद बनाम समाजवाद: डॉ. मिल्टन फ्रीडमैन और जॉन गॉल्ट की दृष्टि से

समाज, नैतिकता, अर्थशास्त्र और स्वतंत्रता पर दो महान विचारकों—डॉ. मिल्टन फ्रीडमैन और जॉन गॉल्ट (एटलस श्रग्ड)—की दृष्टियों को समझना आज के संदर्भ में अत्यंत आवश्यक है। ये दोनों विचारधाराएँ हमें बताते हैं कि कैसे संसाधनों का उपयोग, स्वतंत्रता, और व्यक्तिगत अधिकार समाज की नींव को परिभाषित करते हैं।


चार तरीके पैसे खर्च करने के — डॉ. मिल्टन फ्रीडमैन की व्याख्या

डॉ. मिल्टन फ्रीडमैन ने अपने प्रसिद्ध भाषण में बताया कि पैसे खर्च करने के चार तरीके होते हैं:

1. जब आप अपना पैसा अपने ऊपर खर्च करते हैं

  • आप हर चीज़ को जांचते हैं, मूल्य और गुणवत्ता का ध्यान रखते हैं।

  • बेस्ट डील खोजते हैं, डिस्काउंट देखते हैं।

  • खर्च और लाभ दोनों पर आपका नियंत्रण होता है।

2. जब आप अपना पैसा दूसरों के ऊपर खर्च करते हैं

  • जैसे किसी को उपहार देना।

  • आप खर्च की सीमा का ध्यान रखते हैं, लेकिन लाभ (जो सामने वाले को मिलेगा) पर कम ध्यान देते हैं।

3. जब आप दूसरों का पैसा अपने ऊपर खर्च करते हैं

  • जैसे ऑफिस के खर्चे पर होटल का बिल देना।

  • आप यह देखते हैं कि आपको क्या मिल रहा है, लेकिन आप कितने पैसे खर्च कर रहे हैं, यह नहीं देखते।

4. जब आप दूसरों का पैसा दूसरों पर खर्च करते हैं

  • जैसे सरकार जब जनता का पैसा किसी वेलफेयर स्कीम पर खर्च करती है।

  • ना खर्च का ध्यान होता है, ना प्राप्त परिणाम का।

  • यहीं से संसाधनों की सबसे बड़ी बर्बादी शुरू होती है।

👉 निष्कर्ष:

समाजवाद की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमें सबसे अधिक फैसले चौथे तरीके से होते हैं — जहाँ ना खर्च करने वाले को परवाह होती है, ना लाभ पाने वाले को मूल्य का अंदाज़ा। इसीलिए यह प्रणाली स्वभाविक रूप से अक्षम (inefficient) है और गरीबी तथा भ्रष्टाचार इसके अनिवार्य परिणाम हैं।


"एटलस श्रग्ड" और जॉन गॉल्ट का दर्शन: समाजवाद के खिलाफ विद्रोह

"एटलस श्रग्ड", अयन रैंड का प्रसिद्ध उपन्यास, इन सभी विचारों को एक दार्शनिक और साहित्यिक रूप में प्रस्तुत करता है। इसका केंद्रीय पात्र जॉन गॉल्ट है — एक विद्रोही, नवप्रवर्तक और समाज के शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला व्यक्ति।


जॉन गॉल्ट कौन हैं?

"जॉन गॉल्ट कौन है?" यह सवाल उपन्यास की शुरुआत में समाज की निराशा और भ्रम को दर्शाता है। परंतु वह एक सशक्त प्रतीक बनकर उभरते हैं:

  • एक महान आविष्कारक और विचारक

  • ऑब्जेक्टिविज़्म (Objectivism) के प्रतिनिधि

  • स्वतंत्रता, नवाचार और तर्क के समर्थक


जॉन गॉल्ट की विचारधारा के मुख्य स्तंभ

1. तर्कसंगत स्वार्थ (Rational Self-Interest)

  • हर व्यक्ति को अपनी खुशी और उपलब्धियों का अधिकार है।

  • बलिदान की नैतिकता को खारिज करते हैं।

2. उत्पादकता और नवाचार

  • उत्पादक लोग ही समाज की रीढ़ हैं।

  • मेहनत, तकनीक और रचनात्मकता सर्वोच्च हैं।

3. पूंजीवाद की नैतिकता

  • पूंजीवाद ही ऐसा तंत्र है जो व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है।

  • यह प्रणाली स्वतंत्र विनिमय और न्याय का प्रतीक है।

4. परोपकार का विरोध

  • समाज की "सामूहिक भलाई" के नाम पर व्यक्तियों के अधिकारों का हनन स्वीकार्य नहीं है।


जॉन गॉल्ट की हड़ताल: दुनिया को रोकना

गॉल्ट दुनिया के सबसे प्रतिभाशाली लोगों—विज्ञान, उद्योग और रचनात्मकता के नेताओं—से आग्रह करते हैं कि वे इस शोषणकारी समाज का साथ छोड़ दें।

उद्देश्य:

  • यह दिखाना कि समाज उन्हीं पर टिका है जिन्हें वह लूट रहा है।

  • जब उत्पादक लोग हटते हैं, तो समाज चरमरा जाता है।


जॉन गॉल्ट का रेडियो भाषण: एक विचारधारा का घोषणा-पत्र

यह भाषण Objectivism की आत्मा है:

  1. मनुष्य एक तर्कसंगत प्राणी है

  2. स्वार्थ एक नैतिक गुण है

  3. सामूहिकता समाज को नष्ट करती है

  4. वास्तविक स्वतंत्रता व्यक्तिगत अधिकारों से आती है


डॉ. फ्रीडमैन और जॉन गॉल्ट की एकजुट सोच

विषय डॉ. मिल्टन फ्रीडमैन जॉन गॉल्ट
संसाधनों की बर्बादी सरकारी खर्च के चौथे प्रकार में होती है सामूहिकता में होती है
व्यक्तिगत अधिकार सर्वोच्च माने जाते हैं अधिकारों की नींव हैं
समाजवाद की आलोचना व्यावहारिक और आर्थिक रूप से नैतिक और दार्शनिक रूप से
समाधान मुक्त बाजार और सीमित सरकार पूंजीवाद और व्यक्तिगत स्वतंत्रता

निष्कर्ष: क्यों पूंजीवाद ही समाधान है

  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता किसी भी प्रगति की जड़ है।

  • समाजवाद, चाहे जितना सुंदर दिखे, संसाधनों की बर्बादी और नैतिक पतन की ओर ले जाता है।

  • डॉ. फ्रीडमैन हमें बताते हैं कि व्यवहारिक रूप से समाजवाद कैसे असफल होता है।

  • जॉन गॉल्ट हमें दिखाते हैं कि नैतिक और दार्शनिक रूप से समाजवाद क्यों अस्वीकार्य है।


आज की दुनिया में प्रासंगिकता

  • सरकारें जब जनता का पैसा बेतरतीब तरीके से खर्च करती हैं, तो वह फ्रीडमैन की चौथी स्थिति बन जाती है।

  • जब सफलता को दंड और औसत को पुरस्कार मिलता है, तो वह जॉन गॉल्ट की चेतावनी बन जाती है।

इसलिए, यदि हम एक तर्कसंगत, स्वतंत्र और प्रगतिशील समाज चाहते हैं—तो हमें जॉन गॉल्ट की हड़ताल और फ्रीडमैन की चेतावनी दोनों को गंभीरता से लेना चाहिए।


अमेरिका में 324 लोगो के विरुद्ध केस दर्ज हुआ है मेडिकेयर व मेडिकेड प्रोग्राम में 15 बिलियन डॉलर, याने लगभग 1.30 लाख करोड़ रुपये, का घोटाला करने के आरोप में. ये दोनों प्रोग्राम अमेरिका की मुफ्तखोरी योजनाये है.

अमेरिका की प्रतिव्यक्ति आय भारत से तीस गुना है, और वहाँ के 95%“ग़रीब” दुनिया के किसी भी अन्य देश में गरीबो की सूची में नहीं आयेंगे. फिर भी वहाँ भी राजनेता मुफ्तखोरी योजनाये चलाते है क्यूंकि इन्ही योजनाओं में नेताओ की सारी मलाई छुपी है.

और समाजवादी योजना का वहाँ भी वही परिणाम हुआ है जो किसी भी समाजवादी देश में होता है: जनता भ्रष्ट हो गई है.

कोई समाज कितना भी सत्यनिष्ठ honest हो, समाजवाद आते ही भ्रष्ट हो जाएगा. और कितने भी लोकपाल ले आओ, भ्रष्टाचार बढ़ता ही जाएगा.



Saturday, 28 June 2025

भारत में आतंकवाद, राजनीति और मानसिक गुलामी का त्रिकोण


भारत में लोगों को इस स्तर पर मानसिक रूप से गुलाम बना दिया गया है कि वे अंजाने में ही आतंकवादियों के वकील बन जाते हैं — और उन्हें खुद ही यह समझ में नहीं आता कि वे किस नैरेटिव में उलझ चुके हैं।
देश में हर बार जब कोई आतंकवादी हमला होता है, तब बहस की दिशा आतंकवाद से हटाकर ‘मानवाधिकार’, ‘समाज की जिम्मेदारी’, और ‘जांच की आवश्यकता’ जैसी बातों पर मोड़ दी जाती है, जबकि सच्चाई सबके सामने होती है।

भारत में आतंकवाद ऐसी समस्या नहीं रह गई है जिसे पहचानने या जांचने की ज़रूरत हो। क्योंकि यह सब कुछ पहले से ही सामने होता है — कौन कर रहा है, कहां से कर रहा है, किसका समर्थन प्राप्त है, और कौन उसे शरण दे रहा है — ये सारी बातें खुलेआम सामने होती हैं।
अब तो हालात ऐसे हैं कि आतंकवादी खुद वीडियो बनाकर धमकी देते हैं, फिर हमले करते हैं और बाद में वीडियो बनाकर स्वीकार भी कर लेते हैं।
ऐसे में किसी ‘लंबी जांच’ का दिखावा केवल एक पुराना मानसिक खेल (mind game) बन जाता है, जिसे जनता को भ्रम में रखने के लिए दोहराया जाता है।

असलियत यह है कि जब कोई हमला करता है, तो उसे सिर्फ उतनी ही जानकारी दी जाती है जितनी उसे ज़रूरत है — न कम, न ज़्यादा।
उसका इस्तेमाल एक प्यादे की तरह किया जाता है और फिर उसे पकड़कर दिखावे की कार्रवाई की जाती है कि अब हम उसके आकाओं तक पहुँच जाएंगे। लेकिन सच्चाई यह है कि भारत की राजनीतिक और कूटनीतिक क्षमता अभी उस स्तर तक नहीं पहुँची है कि वह इन आकाओं को सच में पकड़ सके।

भारत ने मसूद अजहर जैसे कुख्यात आतंकवादी को एक बार पकड़ भी लिया था, लेकिन फिर हाईजैकिंग की धमकी में उसे छोड़ दिया गया।
और उसके बाद वर्षों तक उसने भारत और दुनिया में हजारों निर्दोष हिंदुओं की हत्या करवाई।
आज लोग केवल ‘ऑपरेशन सिंधूर’ में उसके किसी भतीजे के मारे जाने पर ही संतुष्ट हो जा रहे हैं — जबकि शायद खुद मसूद अजहर को नहीं पता होगा कि उसके कितने भतीजे हैं।
पुलवामा जैसे हमलों के असली मास्टरमाइंड आज भी खुले घूम रहे हैं, लेकिन हमारे देश में नारेबाज़ी, संस्था उद्घाटन, और ‘महान नेता’ की भक्ति में ही ऊर्जा खर्च की जा रही है।

अब देखिए 28 जून 2022 को उदयपुर का उदाहरण—कन्हैया लाल साहू की गला रेत कर दिनदहाड़े हत्या करने वाले ने पहले वीडियो बनाया, फिर खुलेआम उसे मार डाला, और मारने के बाद भी वीडियो बनाकर स्वीकार किया और जेल चला गया। और आज वह फिर से बाहर आ गया है।
ऐसे समय में आतंकवादियों को ज़िंदा पकड़ने और फिर सालों तक अदालतों में घसीटने से बेहतर है कि उन्हें सीधे समाप्त किया जाए।
वरना जनता को सिर्फ एक फेक नैरेटिव में उलझाकर रखा जाता है।

असल में, अपनी कायरता और झूठी क्रेडिबिलिटी को छुपाने के लिए ही राजनीतिक लोग जांच आयोग और SIT जैसी संस्थाओं का गठन करते हैं।
हर बार जब कोई बड़ा सुरक्षा चूक (security failure) होती है, आप देखेंगे कि सबसे पहले कोई नेता वहां पहुंचता है, मृतक के परिवार को सहानुभूति दिखाता है और उसी निकम्मे विभाग के किसी अधिकारी को पुरस्कार दे देता है।
उसे मरे हुए पुलिस या सेना के जवान से कोई मतलब नहीं होता — उसका मकसद सिर्फ जनता के गुस्से को भटकाना और खुद को झूठे गर्व और महिमा में दिखाना होता है।

किसी भी सुरक्षा चूक के बाद कभी ये चर्चा नहीं होती कि गलती कहां हुई, किसकी वजह से हुई और आगे इसे रोकने के लिए क्या किया जाएगा।
क्योंकि इनकी नजरों में यह सब ‘नेगेटिव चर्चा’ होती है।
ये लोग कुछ भी न करके भी महापुरुष बनना चाहते हैं, और जनता को झूठे मोटिवेशन और अज्ञान के गर्व में जीने के लिए तैयार करते हैं।

Wednesday, 8 January 2025

सनातन धर्म की गंभीरता को नष्ट करने का षड्यंत्र: पाखंडी साधु और मीडिया की भूमिका


आज के समय में सनातन धर्म और हिंदू समाज को एक गहरी चाल के तहत निशाना बनाया जा रहा है। यह चाल केवल धर्म के प्रति लोगों की आस्था को कमजोर करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य हिंदू समाज को अंधविश्वासी, मूर्ख और पाखंडी बनाना है। इस षड्यंत्र का सबसे बड़ा हथियार है - मीडिया और उसके द्वारा प्रचारित किए जाने वाले ढोंगी साधु-संत।  


## छोटे बच्चे को बाबा बनाकर प्राइम टाइम पर लाना  


आपने अक्सर देखा होगा कि टीवी न्यूज़ चैनल्स और शोज़ में छोटे बच्चों को "बाबा" या "संत" के रूप में पेश किया जाता है। इन बच्चों को प्राइम टाइम पर दिखाया जाता है, और उनके मुंह से सनातन धर्म की बातें करवाई जाती हैं। लेकिन क्या यह सच में धर्म की सेवा है, या फिर एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा?  


### 1. विदेशी लोग हम पर हंसेंगे  

अगर यह बच्चा बड़ा हो गया और उसके कार्यों से सनातन धर्म की छवि खराब हुई, तो विदेशी लोग हम पर हंसेंगे। वे कहेंगे कि देखो, यह है हिंदू धर्म, जहां बच्चों को बाबा बनाकर पूजा जाता है। इससे हमारे धर्म की गंभीरता और प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचेगी।  


### 2. मूर्ख और ढोंगी साधु  

यह बच्चा या ऐसे ही अन्य ढोंगी साधु आगे चलकर किसी गलत काम में फंस सकते हैं। उनके कार्यों से हिंदू धर्म के असली साधु-संत और परंपराएं बदनाम होंगी। लोग यह कहने लगेंगे कि देखो, यह है हिंदू धर्म, जहां ऐसे लोगों को संत बनाया जाता है।  


### 3. समाज को गलत राह पर ले जाना  

चाहे यह बच्चा या ढोंगी साधु गलती करे या न करे, यह समाज को गलत राह पर ले जाने का कारण बनेगा। लोग उनके बताए गलत रास्तों पर चलेंगे और धर्म के नाम पर अंधविश्वास फैलाएंगे।  


### 4. अनुयायियों के बीच विवाद  

अगर इन ढोंगी साधुओं को बेनकाब किया जाए, तो उनके अनुयायियों के बीच विवाद होगा। इससे समाज में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ेगी, जिनका आपस में सामंजस्य नहीं होगा। यह समाज के लिए एक बड़ा खतरा है।  


### 5. पुरानी परंपराओं से दूरी  

जब लोग देखेंगे कि मंत्र जाप करने या धार्मिक अनुष्ठानों से कुछ नहीं होता, तो वे पुरानी परंपराओं से और दूर हो जाएंगे। इससे हमारी सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुंचेगा।  


### 6. नकारात्मकता का प्रसार  

जो लोग पहले से ही इन ढोंगी साधुओं को मूर्ख मानते हैं, वे जब ऐसी खबरें सुनेंगे, तो उनके मन में और अधिक नकारात्मकता फैलेगी। इससे समाज में विभाजन और बढ़ेगा।  


## सनातन धर्म के सबसे बड़े शत्रु  


ऐसे लोग सनातन धर्म के सबसे बड़े शत्रु हैं। इनके कारण ही हमारे धर्म की गंभीरता नष्ट हो गई है। इनके कारण ही समाज अंधविश्वासी और मूर्ख बन गया है। भोले-भाले लोग इन धूर्त विद्वानों के चक्कर में फंसकर मूर्ख बन जाते हैं।  


## पूरी दुनिया का षड्यंत्र  


पूरी दुनिया का षड्यंत्र यही है कि वे हिंदू प्रतिरोध को खत्म करना चाहते हैं। इसलिए वे हिंदू धर्म गुरु के रूप में कचरा प्लांट करते हैं। ये ढोंगी साधु और बाबा हिंदुओं को अहिंसक, निरीह, दयालु और पाखंडी बनाते हैं। यही कारण है कि आज का हिंदू समाज अपनी पहचान खोता जा रहा है।  


## मीडिया की भूमिका  


हर न्यूज़ चैनल पर एक पाखंडी ही हिंदू साधु-संत के रूप में लाया जाता है। इन्हें प्राइम टाइम पर दिखाया जाता है ताकि लोगों के मन में सनातन धर्म के प्रति गलत धारणा बने। यह सब सनातन धर्म की गंभीरता को नष्ट करने के लिए किया जा रहा है।  


## निष्कर्ष  


हमें इस षड्यंत्र को समझने की जरूरत है। हमें ऐसे ढोंगी साधुओं और बाबाओं से सावधान रहना चाहिए। सनातन धर्म एक गंभीर और वैज्ञानिक धर्म है, इसे अंधविश्वास और पाखंड से दूर रखना हम सभी का कर्तव्य है। आइए, मिलकर इस षड्यंत्र को विफल करें और सनातन धर्म की गरिमा को बचाएं।  

Friday, 13 December 2024

किसी भी घटना का अचानक होना नहीं होता – एक चैन रिएक्शन होता है

 

किसी भी घटना का अचानक होना नहीं होता – एक चैन रिएक्शन होता है

कोई भी घटना कभी भी अचानक से नहीं होती, वह हमेशा एक चैन रिएक्शन में होती है। केवल हमारा ध्यान नहीं होता उस पर और वह हमारे सामने होने के बावजूद हम उसे नजरअंदाज कर देते हैं। इसी वजह से हमारे धर्म के एपिस्टेमोलॉजी ( ज्ञानमीमांसा, Epistemology) में अज्ञानता (ignorance) के ऊपर बहुत गहरा प्रभाव और महत्व दिया गया है।

कोई भी देश हो, जैसे सीरिया हो, बांग्लादेश हो या भारत हो, हमारे लोग जो भी हो रहा है, उसे समझने की बजाय पार्टी करने में व्यस्त हैं। और जब भी दुश्मन पूरे मूड में हमला करेगा, तो हम कहेंगे कि सब अचानक से हो गया। लेकिन यह अचानक केवल उनके लिए है जो जागरूक नहीं हैं, जो जागरूक हैं, उनके लिए तो यह पहले से पता था और वे तैयार भी थे।और जिन लोगों को लगता है कि यह अचानक हो गया, और अगर आप इन लोगों में से हैं तो समझो आप उस क्षेत्र के लिए तैयार नहीं हो।

जैसे कि ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और कोई भी घटना हो, चाहे वह बांग्लादेश की हो, सीरिया की हो, या अमेरिका का अफगानिस्तान को छोड़कर जाना हो। कुछ भी अचानक नहीं होता।


वैश्विक घटनाओं के उदाहरण: जो अचानक नहीं होते, बल्कि लंबे समय से चलते हैं

1. ISIS का उदय (Middle East)

  • लोग क्या सोचते हैं: 2014 में अचानक ISIS ने इराक और सीरिया के बड़े हिस्सों पर कब्जा कर लिया, और यह सब बहुत चौंकाने वाला था।
  • असल में क्या हुआ: ISIS का उदय अचानक नहीं था। यह कई वर्षों की अस्थिरता और मध्य-पूर्व के संघर्षों का परिणाम था, विशेष रूप से इराक युद्ध (2003) और सीरियाई गृहयुद्ध (2011)। शिया और सुन्नी के बीच संघर्ष पिछले 1000 वर्षों से चल रहा है और यह एक इस्लामिक आंतरिक मुद्दा है जो हर देश में पिछले 1400 वर्षों से जारी है। इराक में शिया और सुन्नी के बीच हिंसा और संघर्ष बढ़ते गए थे, जिसने ISIS जैसे उग्रवादी समूहों को बढ़ावा दिया। ISIS का जन्म अल-कायदा से हुआ था, और इस्लामिक दुनिया में मौजूदा आंतरिक तनाव और असंतुलन ने इस समूह को ताकतवर बनाया।
2.  2014 यूक्रेनी क्रांति और क्रीमिया का विलय
  • लोग क्या सोचते हैं: 2014 में यूक्रेनी क्रांति और रूस द्वारा क्रीमिया का विलय अचानक हुआ था।
  • असल में क्या हुआ: 2014 की क्रांति, जिसे Euromaidan के नाम से भी जाना जाता है, लंबे समय से बढ़ती असंतोष का परिणाम थी। यूक्रेनी राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच की यूरोपीय संघ के साथ असोसिएशन समझौते पर हस्ताक्षर से इनकार करने के कारण बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। हालांकि, यूक्रेन कई वर्षों से राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा था, जिसमें पश्चिमी यूरोपीय और रूसी समर्थक क्षेत्रीय असहमति प्रमुख थीं। क्रीमिया के विलय और पूर्वी यूक्रेन में संघर्ष अचानक नहीं थे, बल्कि यह रूस की यूक्रेन के भू-राजनीतिक महत्व के लिए लंबे समय से चली आ रही योजनाओं का परिणाम थे।
अचानक कुछ नहीं होता, सबका कारण होता है, और उसके वृहद प्रयास किए जा रहे होते हैं और जब उस बदलाव के लिए संघर्ष हो रहा होता है तब लोग उन प्रयासों को नजरअंदाज करते हैं और जब वह बदलाव उनके सामने खड़ा होता है तो वे शॉक्ड हो जाते हैं उन्हें लगता है ये सब अचानक हुआ। और फिर भागते हैं, डरते हैं, समझौते का प्रयास करते हैं या मारे जाते हैं या स्वयं ही मर जाते हैं।
पर समाधान का प्रयास नहीं करते क्योंकि समाधान भी उसी प्रक्रिया से होता है जिस प्रक्रिया से कोई समस्या खड़ी हुई, उसकी एक समय सीमा और सिद्धांत होता है अचानक कुछ नहीं होता।

Wednesday, 11 December 2024

नई पीढ़ी के लोग जब अपने इतिहास, भौगोलिक मूल्यों और धर्म से लंबे समय तक 100% डिसकनेक्ट हो जाते हैं, तो क्या होता है?

 नई पीढ़ी के लोग जब अपने इतिहास, भौगोलिक मूल्यों और धर्म से लंबे समय तक 100% डिसकनेक्ट हो जाते हैं, तो क्या होता है?

वे स्वयं ही अपने आप के दुश्मन बन जाते हैं।

मूल धर्म सत्य और असत्य है। अगर आपको दिख रहा है कि आपके पूर्वज 100% खराब और बुरे ही थे और उनके द्वारा बनाए गए सभी ढांचे 100% खराब ही हैं, तो आपको नई और अच्छी सोच को अपनाना चाहिए। लेकिन मानव अपने बचपन से सिखाए गए ढांचे को छोड़ने का साहस नहीं कर पाता। और हमारे निष्क्रिय और कायर अच्छे लोगों ने बुरे लोगों को 100% समाप्त भी नहीं किया, यह भी एक बहुत बड़ी गलती है।

आज जो भी बुरे लोग हैं, वे जन्म से ही बुरे लोगों की संतान हैं। उनका पूरा वातावरण, शिक्षा और आदर्श लोग ही सबसे बुरे हैं। ऐसे मामलों में, वे अपने आप में एक बुरा जानवर हैं। अब कोई भी जानवर अपने आप को तर्कपूर्ण रूप से बुरा कैसे स्वीकार करेगा?

यह तो ऐसा ही उदाहरण है कि हम सुअर को बुरा कहते हैं और चाहते हैं कि सुअर खुद स्वीकार करे कि "हाँ, मैं गटर में रहता हूँ, तो मैं खराब हूँ।" जबकि कीचड़ में रहना तो उसके लिए फायदेमंद है और वही उसका डिफॉल्ट नेचर है।

हमने लंबे समय तक बुरे लोगों को पनपने दिया, और बुराई पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित भी रही और और भी मजबूत होती गई। अब यह एक पूरी नई खराब प्रजाति जैसी बन गई है। आप इन्हें सुधारना नामुमकिन है। इनके आदर्श, इनकी किताबें, इनकी सभी चीजें मानवता और हिंदुओं (सनातनियों) से 100% विपरीत हैं।

यह तो बात हो गई जिहादी कौम की।

चलो, मैं आपको मेरे ही जीवन में देखा हुआ एक उदाहरण देता हूँ।

मैं एक यूके की कंपनी में सॉफ़्टवेयर इंजीनियर के रूप में फ्रीलांस डेवलपर था। मेरे साथ 30-40 और डेवलपर थे जो कि यूक्रेन के थे। जब 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था, तो वहाँ के 20-30 साल के युवा लोग Microsoft Teams और Slack पर रोने लगे थे और उस रिश्ते से सहानुभूति ले रहे थे।

जबकि सहानुभूति लेने से कुछ भी नहीं होने वाला। कई लोग यूक्रेन से भाग गए और पोलैंड और यूके में जाकर सेट हो गए। बाकी अभी भी जॉब कर रहे हैं।

अब मैं देख रहा हूँ कि पूरा देश बर्बाद हो रहा है और यूक्रेन के नौजवान $5 के लिए यूके की कंपनियों की वेबसाइट डिज़ाइन कर रहे हैं और पुतिन और रूस को गालियाँ दे रहे हैं। जबकि इन लोगों को NATO, यूक्रेन, रूस का कुछ भी इतिहास पता नहीं है।

वे पिछले 30 सालों से केवल पार्टी करने में लगे थे। अब इन्होंने एक कॉमेडियन को राष्ट्रपति बना दिया। कॉमेडियन किसी के बहकावे में आ गया या उसकी खुद की विचारधारा ये रही होगी कि NATO में शामिल हो जाएँ।

अब ये अमेरिका ने किया, कॉमेडियन ने किया, NATO ने किया, या फिर यूक्रेन के ये पार्टी करने वाले लोगों ने किया। जो भी कहो, लेकिन रूस ने तो उसका जवाब दे दिया।

और अब ये लोग लड़ने की जगह ब्लेम थ्योरी और सैलरी लेने बैठे हैं। ऐसी पीढ़ी चाहे कितनी भी संपत्ति क्यों न कमा ले, तीन पीढ़ियों से ज्यादा नहीं चलती। वे अपने आप समाप्त हो जाती हैं।

जब पीढ़ी को अपना भौगोलिक, दुश्मन और इतिहास पता नहीं होता, तो सब कुछ हो जाने के बाद भी वे न तो सत्य तक पहुँच सकते हैं और न ही कुछ कर सकते हैं। उनका तर्कसंगत रूप से पतन तय हो चुका होता है।

विचारधारा और कार्यनीति का महत्व

 

विचारधारा और कार्यनीति का महत्व: एक विश्लेषण

आज की दुनिया में विचारधारा और उसे आगे बढ़ाने की कार्यनीति का महत्व अतुलनीय है। चाहे वह गलत दिशा में कार्यरत समूह हों या किसी सकारात्मक लक्ष्य के लिए संघर्ष कर रहे संगठन, उनकी सफलता उनकी विचारधारा की गहराई और कार्यनीति की मजबूती पर निर्भर करती है। इसका एक स्पष्ट उदाहरण कट्टरपंथी विचारधारा वाले संगठन हैं, जो अपने उद्देश्य को पाने के लिए न केवल विचारों का प्रचार करते हैं, बल्कि अपने कार्य को प्रभावी बनाने के लिए हथियारों और रणनीतिक ढांचे का भी सहारा लेते हैं।

गलत दिशा में कार्यरत संगठन से सीखने की आवश्यकता

जहां तक जिहादी समूहों का सवाल है, उनके विचारों और उद्देश्यों का हर कोई विरोध करता है। उनकी विचारधारा मानवता और शांति के विपरीत है। लेकिन उनकी कार्यप्रणाली और रणनीति का विश्लेषण हमें सिखा सकता है कि किस तरह अपने लक्ष्यों के लिए समर्पण और दीर्घकालिक योजना बनाई जाती है। जिहादी अपने विचारों को धरातल पर लागू करने के लिए विचारधारा और हथियार दोनों का सहारा लेते हैं। यह रणनीतिक सोच हमें सिखाती है कि एक मजबूत और संगठित ढांचा कैसे तैयार किया जा सकता है।

वर्तमान उदाहरण: बांग्लादेश की रणनीति

बांग्लादेश में जिहादी खुलेआम यह स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं कि बंगाल, बिहार और ओडिशा उनके हिस्से हैं और वे इसे लेकर रहेंगे। यह एक गंभीर चुनौती है। जहां हमारे राष्ट्रवादी इसे महज एक मूर्खतापूर्ण विचार समझकर नजरअंदाज कर रहे हैं, वहीं जिहादी इसे अगली दो पीढ़ियों के लिए एक स्थापित सत्य बनाने में जुटे हुए हैं।

अगले 40 वर्षों में, उनकी यह विचारधारा बंगाल की नई पीढ़ियों के दिमाग में गहराई तक स्थापित हो जाएगी कि ये क्षेत्र वास्तव में उनके हैं और उन्हें वापस लेना उनका अधिकार है।

हिंदू समाज और उसकी कमजोरियां

हमारे समाज में ऐसे कई लोग हैं जो इन खतरों को समझने में असमर्थ हैं।

  1. राजनीतिक नेतृत्व की निर्भरता: लोग सोचते हैं कि मोदी या कोई अन्य नेता हर समस्या का समाधान करेंगे। परंतु यह मानसिकता कमजोर है। नेतृत्व को केवल योजनाएं बनाने और मार्गदर्शन देने की जिम्मेदारी होनी चाहिए, जबकि समाज और योद्धाओं को कार्यान्वयन का बीड़ा उठाना चाहिए।

  2. सेना की सीमाएं: हमारी सेना में अद्भुत योद्धा हैं, लेकिन वे भी केवल राजनीतिक आदेशों तक सीमित हैं। वास्तविक लड़ाई योद्धा लड़ते हैं, न कि वे लोग जो केवल तनख्वाह और पेंशन पर निर्भर हैं।

  3. समाज का निष्क्रिय समर्थन: हमारे समाज में ऐसे लोग हैं जो केवल भाषण देने या अति उत्साही होकर योजनाओं की बातें करते हैं। वे न तो जमीनी स्तर पर सक्रिय होते हैं और न ही कार्य को अंजाम देते हैं।

वर्तमान समय की सामाजिक प्रवृत्ति

मैंने देखा है कि 2014 के बाद से अचानक ही बहुत से लोग राष्ट्र और धर्म के बारे में विचार करने लगे हैं। लेकिन उनसे बात करते ही यह स्पष्ट हो जाता है कि यह एक नया रुझान है। ये लोग अपने जीवन के पहले 30-35 साल कुछ भी नहीं करते, और अचानक किसी क्षेत्र में प्रवेश कर 4-5 साल में खुद को विशेषज्ञ मानने लगते हैं।

2014 से पहले कई लोग ऐसे थे जिनके लिए भारत का कोई महत्व नहीं था और भारत का इतिहास उनके लिए कुछ भी नहीं था। वे पूरी तरह से नकारात्मक और निराशावादी थे। लेकिन अब जो नए लोग आ रहे हैं, वे 100% अति-प्रेरित हैं और मानते हैं कि भारत और भारत का इतिहास ही सर्वश्रेष्ठ है। उनके लिए बाकी सभी देश और समाज तुच्छ हैं। यह अत्यधिक अतिरेक भी नुकसानदायक है।

इस प्रकार, जो लोग पहले भी राष्ट्र और धर्म को नुकसान पहुंचा रहे थे, वे अब अति-प्रेरित और कार्यहीन होकर भी नुकसान ही कर रहे हैं। इनके लिए वास्तविकता का कोई महत्व नहीं है। अतिसार्वत्र वर्जयते (अति हर चीज की हानिकारक होती है) इन पर पूरी तरह फिट बैठता है।

समाधान: एक सशक्त विचारधारा और संगठन

  1. यथार्थवादी दृष्टिकोण: किसी भी समस्या का समाधान अति उत्साह या निराशा से नहीं होता। हमें एक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना होगा।

  2. दीर्घकालिक रणनीति: जिहादी समूहों की तरह हमें भी 40-50 वर्षों की दीर्घकालिक योजना बनानी होगी। विचारों को स्थापित करने और समाज में एक मजबूत ढांचा तैयार करने पर ध्यान देना चाहिए।

  3. युवा पीढ़ी को शिक्षित करना: नई पीढ़ी को सही इतिहास और संस्कृति की शिक्षा देना आवश्यक है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि वे अपनी जड़ों से जुड़े रहें और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें।

  4. संगठन और कार्य: समाज को संगठित करना और उसे कार्य में लगाना बेहद जरूरी है। केवल भाषण देने या योजनाएं बनाने से कुछ नहीं होगा। जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन होना चाहिए।

निष्कर्ष

कट्टरपंथी विचारधारा और गलत दिशा में कार्यरत संगठन हमारे समाज के लिए गंभीर खतरा हैं। लेकिन उनके ढांचे और कार्यनीति का विश्लेषण करके, हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रभावी रणनीति बना सकते हैं।

हमें यह समझना होगा कि केवल सेना, नेता या राजनीतिक प्रणाली पर निर्भर रहकर हम कुछ हासिल नहीं कर सकते। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। एक संगठित, शिक्षित और जागरूक समाज ही किसी भी चुनौती का सामना कर सकता है।

Saturday, 30 November 2024

सत्ता, समय और विचारों की लड़ाई - विचारों की लड़ाई के फायदे और सीमाएं


सत्ता और समय का संबंध
सत्ता हमेशा समय के साथ बंधी होती है। समय बदलता है, बीतता है, और उसके साथ परिस्थितियां भी बदल जाती हैं। इसी परिवर्तन के कारण सत्ता का स्वरूप भी बदलता है, और वह हाथ से फिसल जाती है। जो भी मान-सम्मान, सामग्री या संपत्ति सत्ता के माध्यम से प्राप्त होती है, उसका भी समाप्त हो जाने का खतरा हमेशा बना रहता है।

विचारों की शक्ति और उसकी सीमाएं
सांस्कृतिक जागरूकता और वैचारिक युद्ध के बीज बोने की प्रक्रिया में एक स्पष्ट दोष यह है कि यह समय के चक्र में फंस जाती है। मान लीजिए आप पिछले 30 वर्षों से जागरूकता फैला रहे हैं। इस दौरान, आपके विचारों से प्रभावित होकर जागरूक हुए लोग आज आपके ही समान आयु के होंगे। यदि आप 30 साल के थे जब आपने यह शुरू किया, तो आज आप दोनों 60 साल के हो चुके होंगे। अगले 20 सालों में आप और आपके विचारों से प्रभावित अधिकांश लोग 80 साल के हो जाएंगे, और एक दिन यह सभी लोग इस दुनिया में नहीं रहेंगे।

लेकिन विचार अमर होते हैं। हजारों साल बाद भी, आपके विचार नई क्रांति का आधार बन सकते हैं। फिर भी, यह समझना आवश्यक है कि विचारों के प्रभाव से क्रांति लाना एक लंबी प्रक्रिया है। और कई बार, समय इतना नहीं होता कि हम केवल वैचारिक लड़ाई के भरोसे बैठे रहें।

वर्तमान समय की चुनौतियां
आज, हमारा शत्रु ऐसी ताकतें जुटा रहा है, जो मानवता, प्रकृति और पूरे समाज को आने वाले 100-300 वर्षों तक गहरी क्षति पहुंचा सकती हैं। हाल की खबरें बताती हैं कि बंगाल के कुछ नेता और अन्य संदिग्ध तत्व परमाणु रेडियोधर्मी सामग्री की तस्करी में शामिल हो सकते हैं। यदि यह सामग्री आतंकवादियों के हाथ लगती है, तो इसका विनाशकारी प्रभाव संपूर्ण मानव सभ्यता पर पड़ सकता है।

ऐसी स्थिति में, वैचारिक जागरूकता से इस विनाश को रोका नहीं जा सकता। यह लड़ाई केवल विचारों तक सीमित नहीं रह सकती। अब समय है कि दुश्मन के खिलाफ प्रत्यक्ष और सटीक कदम उठाए जाएं।

विचारों की लड़ाई के फायदे और सीमाएं
वैचारिक लड़ाई के अपने लाभ हैं। यह समाज को लंबे समय तक एक दिशा देती है और पीढ़ियों को प्रेरित करती है। लेकिन इसका एक बड़ा दोष यह है कि यह समय की सीमाओं में बंधी होती है। जब तक आप किसी प्रक्रिया की सीमाओं को नहीं समझते, तब तक आप उसका 100% लाभ नहीं उठा सकते।

निष्कर्ष
आज का समय हमें एक बड़ा सबक सिखा रहा है। विचार शक्तिशाली होते हैं, लेकिन केवल विचारों से सब कुछ हल नहीं किया जा सकता। हमें समझना होगा कि कब विचारों से आगे बढ़कर प्रत्यक्ष कार्यवाही की आवश्यकता है। एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए, हमें विचारों की अमरता को बनाए रखना है और साथ ही वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना भी करना है।

मानवता के लिए यह संघर्ष आवश्यक है।

Friday, 9 April 2021

हमारे दुश्मन अकर्मण्यता , कायरता , कुतर्क और निष्क्रियता

 

हमारे लोग हमेशा कोई ना कोई बहाना ढूंढ लेते हैं और हमारे पास जो रिसोर्स हे उस का कहा और कैसे उपयोग करे और उश्मे कैसे बढ़ोतरी करे ये ना सोच कर कोई ना कोई बहाना ढूंढ लेते हैं .


हमारे  ज्यादातर लोग केवल दुखो का रोना रोते रहते हे .कई बार तो इनको प्रॉब्लम का भी सही से ज्ञान नहीं होता हे 

इनको सहिमे प्रोब्ले काया हे वो पतानहीं होता हे।  वे हमेशा प्रॉब्लम क्या हे वो बदलते रहते हे .

असल में ये बात इनको पता हो और न हो ऐसा भी हो सकता हे . और हमेशा यही प्रॉब्लम के बारे में उनको संशय होता है

और प्रॉब्लम क्या है वो पता लग भी गया तो भी मनुष्य का सबसे बड़े दुश्मन  अकर्मण्यता , कायरता , कुतर्क और निष्क्रियता

समस्या का समाधान मिल भी जाये तो भी अकर्मण्यता का शिकारी अपनी अकर्मण्यता छुपाने के लिए कोई ना कोई बहाना 

ढूंढ लेते हैं . अकर्मण्यता का कारण कायरता भी हो सकता है .और कायरता छुपाने के लिए कोई ना कोई कुतर्क का सहारा लिया जाता है .  

ऐसे लोग इतिहास और वर्तमान की सिस्टम का दोष दे कर वर्त्तमान में निष्क्रियता में रह कर 

भविष्य उज्जवल बनानेकी बाते करते हे .

निष्क्रियता  छुपाने के लिए कोई ना कोई कुतर्क का सहारा लिया जाता है .  Example ( अहिंसा )

जो  मनुष्य केवल खुद को यूनिवर्स के सेण्टर में रख कर जी रहा हो और खुद का फायदा ही सबसे महत्व पूर्ण रख ता हो उस  नेरो माइंडसेट (संकीर्ण मानसिकता ) का मनुष्य अकर्मण्यता , कायरता , कुतर्क और निष्क्रियता का सहारा लेता हे 

ऐसा मनुष्य मानवता और खुद का भी दुश्मन होता है . हमारे आज कल के जिहादियों की फ्री में वकालत करने वालो का कुछ असा ही हाल हे

जिज्ञासा और संदेह (संशय) कोई भी रिसर्च के लिए बहुत ही अच्छा है . लेकिन पूरी लाइफ संशय में बिता देना अच्छी बात नहीं 

संशय भी ऐसा होना चाहिए की उसे मानवता और विज्ञान में बढ़ोतरी हो . 

सरकार के अधीन भारत के हिंदू मंदिर नहीं रहने चाहिए ये बात बिलकुल सही हे  क्युकी हमारा राष्ट्र अभी भी हिन्दू , जैन और बौद्ध धर्म दर्शनशास्र  १००% फॉलो नहीं करता इतिहास और वर्त्तमान की अकर्मण्यता , कायरता , कुतर्क और निष्क्रियता की वजहसे जिहादी मजहब भी संविधान की आड़ में सामान और सुरक्षित हे इसलिए . लेकिन अभी भी सरकार के  अधीन नहीं रहने चाहिए ये पता  हे लेकिन किशके अधीन रहना छाए ये बहोत कॉम्प्लिकेटेड समस्या हे . और जब तक हम एक अखंड महाभारत हिंदू राष्ट्र नहीं बनाते, तब तक  100% और स्थायी समाधान नहीं है। लेकिन तबतक हमें वर्त्तमान के हालत के अनुसार कैसे भी करके मंदिरो को ये सेकुलर और सर्व धर्म समभाव  ( मानव और राक्षस दोनों एक ही हे वाले सविधान ) के चगुल में से छुड़वा लेने हे 

केलिन सरकार के अधीन से निकलने के बाद भी ये मंदिर केवल हिन्दू औ के लिए अच्छे कार्य करसकते हे लेकिन राष्ट्र के लिए काम नहीं आ सकते क्युकी राष्ट्र के लिए कुछभी करना उस में जेहादिओं का भी हिस्सा होगा अभी के सविधान के हिसाबसे .

मंदिरो की सम्पति केवल हिन्दू ओ के लिए यूज़ होनी चाहिए।  और उष्का जेहादी और को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष 

रूप से कोई भी फायदा नहीं होना चाहिए

हमारे कई लोग आज बोल रहे हे मंदिरो का धन सरकार के पास जरहाहे इसलिए सनातन कमजोर पड़ रहाहे , बात तो सही हे लेकिन कोई ये नहीं बता रहा ही जो मंदिर सरकार के अंतर्गत नहीं हे और उन्हें करोडो का सालाना दान मिलता हे उस मेसे कितना धन आजतक यति नरसिम्हा नन्द सरस्वती जैसे योद्धा ओ को काम में आया ?. 

मेरे शेरो बढ़ो आगे , करो दिशाओं को रोशन अपनी चिता ओ से -- यति नरसिम्हा नन्द सरस्वती

समझ समझ के समझ को समझो समझ समझना भी एक समझ है समझ समझ को जो ना समझे मेरी समझ में वह नासमझ है  -- सूर्यसागरजी गुरुदेव 

#Nationalist #philosophie #दार्शनिक



Sunday, 14 February 2021

हंमेशा ही ये साबित करना की सभी जेहादी बुरे नहीं होते ये भी एक स्ट्रेटेजी हे


मोहम्मद हामिद अंसारी ने  रिटायरमेंट के समय जो कहा था उश्से विपरीत बात गुलाम नबी आजाद से बीजेपी ने बुलवाया और ये साबित करने की कोसिस की की सभी जेहादी बुरे नहीं होते और एके बार फिर पोलिटिकल करेक्टनेस और सेकुलरिस्म की मेसेज की राजनिति  कर के देश की जनता को कन्फूस किया हे . ( गुलाम नबी आजाद  के लिए मोदीजी ने आँसू बहकर बहोत बड़ी गलती करदी हे ) जिनका धर्म मानवता का दुश्मन हे , जिनका आचारन पूरी जिंदगी नेचर और एनिमल्स (प्राणी, जंतु ,पशु ) के विरुद्ध हे उनके लिए असू बहाना व्यर्थ हे 

मोहम्मद हामिद अंसारी हो या  गुलाम नबी आजाद ये दोनों गजवाये हिन्द के लिए ही काम कर रहेहे इस लिए किसी भी तकरीके से गुण गान करना बंद करना होगा  

 गुलाम नबी आजाद ने अभी भी  मोहम्मद हामिद अंसारी को गलत नहीं कहा हे , उशने  सिर्फ एके बयान बाजी की हे  हमारे लोग ही उस का मतलब किनक ने में लगे हे . हमारे लोग जरासी वाह वाही  में बहोत उड़ने लगते हे . अगर कोई जेहादी राम मंदिर के लिए १०० रूपया डोनेट करता हे तो उसे वही पर कहदो की OK . 

उस की प्रशंसा करके उसका मार्केटिंग मत करने लगो . हमारे अज्ञानी लोग जेहादी के १०० रूपया के डोनेशन में पूरी जिंदगी उसका सेल्स एंड मार्केटिंग  की जॉब करने लगजाते हे 

और राष्ट्रवादी और अखंड भारत के निर्माण के लिए जोभी काम कर रहा हो ऐसे हरेक व्यक्ति को ये बात हमेसा याद रखनी चाहिए 

योगी आदित्यनाथ , अमित शाह , नरेंद्र मोदी जैसे नेता हमें २१ मि सदी में पहली बार मिले हे , ये बात अच्छी  हे

लेकिन  राष्ट्रवादी और अखंड भारत के निर्माण के लिए जोभी काम कर रहा हो उसे व्यक्ति पूजा और फेन फोल्लोविंग से ऊपर उठाना होगा . संवैधानिक गरिमा और इंटरनेशनल और इंटरनल पॉलिटिकल हालत के चलते हमारे नेता पलिटिकल करेक्टनेस और सेकुलरिस्म की मेसेज की राजनीती करते हे ऐसा हो सकता हे लेकिन आइडियोलॉजी ही सेकुलर हो ऐसा भी हो सकता हे ये सिर्फ जेहादी ओ को ही नहीं राष्ट्रवादी ओ को भी कन्फूस करते हे , ये कभी भी एके तरफ़ा झुकाव नहीं रखते , दोनों तरफ से बाते करते  हे असल में इनके विचार ही ऐसे हे या इनकी ये पोलिटिकल स्ट्रेटेजी हे ये तो भविष्य ही बताएगा , लेकिन हमें सभी को शक के दायरे में लेकर ही चलना हे 

Dialectic मेथड  से हमें सभी परिस्थिति को देख नाहे और ,सिर्फ विश्वास के भरोसे नहीं रहना हे 

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ऐतिहासिक उदाहरण :

        ब्रिटिश ( अंग्रेज ) लोग १९३८ से ही जान गए थे की अब १० साला से ज्यादा हम भारत पर राज नहीं करपायेंगे 

        अंग्रेज लोग ये जानते थे की अगर भारत ने शस्त्र का इस्तेमाल करके स्वराज की मांग चालू कर दी तो ५ साल भी भारत उनके हाथो  में नहीं रहने वाला 

       1938  से 1945 तक हिटलर ने ब्रिटिश को इतना नुकसान करवाया था की अब ब्रिटिश की हालत , शस्त्र स्वराज की मांग को रोक ने के लिए सक्षम नहीं थी 

शस्त्र संग्राम होता तो ब्रिटिश वैसे ही भारत को छोड़ कर चले जाते ऐसा नहीं है , वे शस्त्र संग्राम को बेहद क्रूर तरीके से कुचल ने की कोसीस करते , लेकिन  उन्हें पता था की अगर लम्बे टाइम के लिए ये चला तो फिर उन्हें यहा से जल्दी से खाली हाथ लौटना पड़ता 

        इस लिए उन्होंने १ कमजोर नेता और कायरता की पोलिटिकल स्ट्रेटेजी को बढ़ावा दिया 

        जब भी कोई आंदोलन हो या सत्यग्रह हो कब और कैसे और किशके द्वारा  नेगोसिएशन करना हे और किस तरीके के विरोध का हमें रिजल्ट देना हे ये अंग्रेज लोग तय करते थे .

     इस तरीके से अंग्रेजो ने हमारे लोगो को बताया की हम ( अंग्रेज ) किनकी बात सुनते हे और हमारा ( भारतीय ) नेता कोन होना चाहिए 

    अंग्रेजो ने स्ट्रेटेजी बनायीं थी की हम कमजोर नेता और कमजोर स्ट्रेटेजी के जरिए भारत की आजादी को जितना पीछे ढकेल सके उतना धकेलेंगे .और कमजोर नेता और कमजोर नेता की कायर  नेगोशिएशन स्ट्रेटेजी से हम भारत के जितने संसाधन को लुट कर ले जा सके उतना ब्रिटिश इकोनॉमी के लिए अच्छा हे . 

संसाधन example : ( Gold, Other Metal , कपास etc...) 

नेता जी सुभास चंद्रा बोस ने पूरी आर्मी बनालिथि , और उन्हें ११ देश ने सपोर्ट किया था . लेकिन 18 August 1945 में उनकी मोत करवा दी गयी . हमें आज़ादी लेनी थी ,ले किन अंग्रेजो को आज़ादी देनी थी वो भी उनकी कंडीशन पर .

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कई बार दुश्मन हमारे माइंड और स्ट्रेटेजी को डिसाइड करवाता हे 

  इसी तरह से , आप पूरी दुनिया ने इतिहास में और वर्तमान में देख लीजिए 

राम मंदिर के केस में  ५०० साल तक कोई कुछ नहीं बोलै लेकिन , जैसे ही ऐसा लगने लगा की फेशला आने वाला हे की 

कुछ जेहादी हमारे पक्ष में अच्छा अच्छा  बोलने लगे , और ये  साबित करने लगे की जैसे हम भी पहले से यही कह रहे थे  और अभी भी यही सोच रहे थे , और सभी जेहादी ख़राब नहीं होते वाला असत्य को फैलाने लगते  हे 

और अज्ञानता के अहंकार में दुबे हुए और वडापाव या फ्री की आधी जूठी बिरयानी में बिकजाने वाले लोग  

के मुह से पर्सन टू पर्सन माऊथ मार्केटिंग करवाते हे की , कुछ चाँद लोगो की वजह से पूरी कॉम को बदनाम करते हे 

हकीकत में ये लोग अज्ञानता के अहंकार में दुबे हुए हे यतो फिर बिकाऊ भी हो सकते हे - ( और ये बात इन्हे खुद को पता हो या नाभि  हो ऐसा हो सकता हे  ) क्युकी अपने आपसे ही बहोत लम्बे टाइम से ये जूठा जुठ बॉल रहे होते हे ) और कायर ता इनके रगो में होती हे 

इन्होने पहले से ही अपने अजु बाजु जेहादी ओ  को पाल पॉश कर रखा होता हे और उन्हें इन जिहादी ओ से कुछ छोटा मोटा बिज़नेस मिलता हे , ये बिकाऊ लोग अपने थोड़े से पेसो के लिए खुले में सभी लोगो के सामने भी जेहादी और असत्य वचनो और अधर्मो  को डिफेंड करते हे 

मेने ये भी देखा हे की ये बिकाऊ लोग और अज्ञानता के अहंकार में दुबे हुए लोग जब पूरी तरह से एक्सपोस हो जाते हे तोभी ये बिकाऊ लोग उनको डिफेंड करेंगे यातो फिर उनके ऊपर कोई जवाब ही नहीं देंगे या तो फिर उन बातों से दूर भागेंगे , लेकिन ये अपनी गलती कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे और नहीं जेहादी को गाली देंगे 

यहाँ तक की टेरर अटैक में सजाये मोत दी जा चुकी हो ऐसे जेहादी के लिए रैली निकालेन्गे  और उनके लिए वकील रखेंगे और united nations में जाकर मानवता का रोना रोते हे , हकीकत में ये मुर्ख लोगो को अपने १०० फुट की दुरी में बरसो से पडी हुयी चीजों के बारेमे भी पता नहीं होता हे , लेकिन अज्ञानता के अहंकार में ये बाते मानवता ,धर्म , अर्थव्यवस्था, एडयुकेशन सीस्टम की करते हे 

आलू पूरी की लारी खोलने की औकात नही है वो लोग आज - आर्मी - अर्थव्यवस्था - एडयुकेशन सीस्टम - अमेरिका - आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की खामी निकाल रहे हे . और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अभिप्राइ देते रहते है

ये सेक्युलर और अज्ञानता अहंकारी जमात के लोग  जेहादी को इतना डिफेंड कर चुके हे की जेहादी ख़ुद सुसाइड बॉम्बर बन कर उनके ही देश में फट जाये और  CCtv रिकॉर्ड में में भी आजाये ,तो भी ये अहंकारी कहेंगे की वीडियो आर्टिफीसियल इंटेलिजन से बनाया हे .और इन्हे आप तुरंत ही पूछो की  आर्टिफीसियल इंटेलिजन हे क्या तो वो दुम दबा कर भाग जाएँ गए.

हमेशा से ही दुश्मन के पक्ष में कुछ हमारे लोग रख ना , पीछे से वार करना और असल मे शत्रु बोध ना करवाना ये गजवा ऐ हिन्द और सारे जेहादी ग्रुप की टस्ट्रेटेजी हे  

हमारे बारे मे अगर कोई जेहादी ४ पेज अच्छे अच्छे लिख दे या पढ़ ले तो हमें खुश होकर उसकी चापलूसी नहीं करनी चाहिए 

हमें जेहादी ओ की खुशामत खोरी की कोई जरूरत नहीं हे . 

अगर कोई जेहादी जेहादी धर्म को त्याग कर कर , मानवता वादी धर्म स्वीकार करता हे तो उन्हें नार्मल की तरह ही ट्रीट करे , उन्हें ज्यादा मान सन्मान दे कर स्टेज पर ले जाकर उशकी साप्लुसी करने की कोई जरुरत नहीं हे 

हमारे यहाँ अगर कोई इंसान नशा करता हे और बादमे नशा करना बन्ध करता हे तो लोगो ऐसे नसेड़ी को कुछ ज्यादा ही सन्मान देने लगते हे।  . नशा करना बन्ध कर दिया इस बात के लिए उस की प्रसंशा होनी चाहिए , लेकिन  - अभी तो वो एके नार्मल इंसान बना हे जो बाय डिफ़ॉल्ट सब होते हे ऐसे में उसकी ज्यादा प्रशंसा करके नेता नहीं बनाना चाहिए।  उस से ज्ञानी का आगे बढ़ ने में रूकावट अति हे और कम गुणवत्ता के पर्सन ( लोग ) समाज में नेता और लीडर और मैनेजमेंट करता बन जाते हे 


हमें जिहादियों से रक्षा नहीं करनी हे हमें अब जिहादियों पर आक्रमण कर ना हे , ये मानसिकता लानी हे , उठो - जागो मानवतावादी ओ . सबसे बडा हथियार नॉलेज है शस्त्र का ज्ञान और शस्त्र चलाने की मानसिकता होनी चाहिए और शत्रु बोध होना ही चाहिए    #Nationalist #philosophie #दार्शनिक


Tuesday, 2 February 2021

सेकुलरिस्म भी एक मैसेज की ही राजनीति है

हमारे लोग अभी भी ये साबित करने में लगे हे कि पिछले 1200 वर्ष से हम सब भाई चारे के साथ रह रहे थे और मेकोले ने आकर सब भिगाड दिया. कायरता इस कदर DNA में बस गयी हे की किसीभी कुतर्क को स्वीकार कर के शांति के नाम पर उसका प्रचार प्रसार करूँगा लेकिन लड़ाई तो में कभी नहीं करूँगा और नहीं में किसी जेहादी का विरोध करूँगा। 

हमारे नेताओ ने थान ली हे की हम केसे भी करके इतिहास में बहोत ही अच्छे से अधर्म के साथ समजोता करके ही रह रहे थे ये साबित करदेंगे , और हमारे कायर लोग उन्हें स्वीकारने में और आगे भी जेहादी  के साथ समजोता करके ही रहेंगे .
यही बातको कुतर्को का सहारा देते हुए और अपनी कायरता को छुपाते हुए स्वीकार भी करेंगे और उसका प्रचार प्रसार करेंगे .
आज कल के नौजवान मक्कार संगठनो ,झूठे धर्म गुरुओ , कमीने नेता ओ के चाकर में अज्ञानता के अहंकार में दुबे हुए हे और इतिहास के महानता की बड़ाई का नशा करते हे 

बीजेपी के कुछ प्रवक्ता ये साबित करने में लगे हे की सारि समस्या की जड़ १९७६ में कोंस्टीटूशन में जो सेक्युलर वर्ड डाला गया उश्के बाद ही हो गई . ये हमारे आजकल के पॉलिटिशियन का प्रॉब्लम ये हे की ये नॉलेज तो ले लेते हे लेकिन उनके पास कोई आइडियोलॉजी नहीं हे।  ये लोग सिर्फ मेसेज की राजनीती करते हे . सेकुलरिस्म भी एक मैसेज की ही राजनीति है . 
सेकुलरिस्म यह सिर्फ एक ओछा फूहड़पन है जो कम बुद्धि के और नीची सेल्फ एस्टीम वाले लोग उन लोगों की नकल में करते हैं जिन्हें वे स्वयं से श्रेष्ठ समझते हैं.


 Pakishtan Area      796,095 km²
 Bangladesh Area   148,460 km²
 Tibet Area              1.228 million km²
 Afghanistan           652,860 km²


Hindu Minority Status: 9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा देने के लिए सुप्रीम गुहार


   
  • याचिका में कहा गया कि लद्दाख, मिजोरम, लक्ष्यद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में हिंदू अल्पसंख्यक हैं
   इन ९ राज्यों मेसे पंजाब के सिवाय सभी राज्यों में जेहादी ओ की समस्या हे आज के         भारत मे.
   

ऊपर दिए गए सभी एरिया Pakishtan,Bangladesh,Tibet,Afghanistan  सभी गवा दिए 
और उनमें से भी पाकिस्तान और बांग्लादेश की स्थापना ही जिहाद के बुनियाद पर हुई हे .फिर भी हमारे नेता कोई हमारी हस्ती 
मिटा नहीं  सकता बोलते बोलते अज्ञानता के अहंकार में बहोत बड़ी बड़ी फेंकते रहते हे। और हमारे बेकार नौजवान अहंकार और बड़ाई का नशा करते हे। हमारे नौजवान को कुछ भी पूछो वो दस हजार साल पहले जो हमारी सिविलाइज़ेशन थी उस की बड़ाई हाकने में से बहार नहीं आते ., सिविलाइज़ेशन में भी दो लाइन से ज्यादा कुछ पूछ ले तो उन्हें कुछ पता नहीं होता .

मेरा तो कायरो से कहता हु  की आप लोग अभिप्राय देना और खुद को  सेकुलर साबित करना ही बंद करदो। अगर आप इतना भी करोगे तो देश और धर्म के लिए बहोत अच्छा रहेगा 
     
पहले से ही बहोत ही नीच सोच वाले नेता और गुरु बनकर बैठे है और नए नौजवान  इन्हे ही एक्सपर्ट समज कर अज्ञानता के अहंकार और बड़ाई का नशा करते हे। और आज कल जो नए पंथ और ग्रुप , आइडियोलॉजी वाले मुर्ख इकठे होते हे और उनमे से ही एक को नेता या गुरु बनाते हे . 

कायर लोग इकठा हो कर कायर नेता बनाते हे फिर वो कायर नेता पोलिटिकल करेक्ट बयान देते हे और यही कायर लोग ताली बजाते हे 

बहोत सरे नौजवान को लगता हे की विक्टिम कार्ड प्ले करने से कोई फ़ायदा होगा 
विक्टिम कार्ड प्ले करके ये लोग असल मे अपनी कायरता को छुपाते हे। इन में से भी आधे लोग तो ऐसे हे की वो अपने आपसे भी झूठ बोलते हे .और ऐसे अपने आपसे भी झूठ बोलते बोलते 
और विक्टिम कार्ड प्ले करते करते इन्हे ये लगने लगता हे की सारि दुनिया में सब कुछ षड्यंत्र ही हे .
राहुल गांधी ने बहुत पहले कहा था की कांग्रेस एक सोच हे सही में ये एक  एशा शौचालय हे जो सोचता हे की
रास्ते पे चलते चलते अगर पत्थर से ठोकर लाग जाये तो भी उश्मे वर्ल्ड रिचेस्ट आदमी ने ही कोइ षड़यंत्र किया होगा।


कोई बुद्धिशाली व्यक्ति अगर भविष्य में आने वाली आपदा के बारे में पहेलेसे बतादेता हे तो उसे ही उस आपदा का षड्यंत्र कारी बताने लगते हे , समाज में ऐसे कुतर्कों से भरे हुए लाखों लोग है जिन्हे दुश्मन की जरूरत ही नहीं हे


जब तक हम रोने धोने की मानसिकता को छोड़कर लड़ने की मानसिकता में नहीं आते,तब तक कुछ भी नहीं बदलेगा।
जब धर्म खतरे में हो तो धर्मयुद्ध ही सबसे बड़ी साधना है ।

राजनीति में धर्म स्थापित करना था, लेकिन धर्म में राजनीति स्थापित की जा रही है।

सोए हुए मनुष्य को जगाया जा सकता है। 
सोने का नाटक करने वाले को नहीं।

Thursday, 26 November 2020

असत्य और अधर्म के खिलाफ बोलना सीखें

 

धर्म = जो धारण करने योग्य हो

if dharma characteristics not include Humanity and love or if dharma characteristics against Humanity and love then you can not say this is dharma

Basic in One Line -

धर्म:-प्रेम और त्याग पर आधारित होता है, मनुष्य और प्रकृति के सुगम विकास का माध्यम है praman and other characteristics of dharm

( Example : sanatan dharma, jain , buddhism,Ājīvika )

Religion:- प्रकृति को महत्व न देते हुए मनुष्य के स्वार्थ पूर्ति का माध्यम है।

मजहब:- अय्याशी करने गुलाम बनाने,तलवार की नोक पर जबरजस्ती ,थोपा गया, मानसिक विकृति, और प्रकृति के लिए विनाशकारी। (example : Islam)

 



10 characteristics of dharma:

Sanskrit: मनुस्मृति ( Manusmṛiti ) 1. Dhrti(patience) 2. Ks’ama(forgiveness) 3. Dhama(self-control) 4. Asteya(non-stealing) 5. Shaoca(cleanliness) 6. control over organs 7. Dhii (benevolent intellect) 8. knowledge 9. benevolent truthfulness 10. non-anger


Mahāyāna sūtras

1) generosity (dāna 2) morality (śīla 3) patience (kṣānti 4) vigor(vīrya) 5) concentration(dhyāna) 6) wisdom (prajñā) full Buddhahood (bodhisattva) additional perfections 7) skill-in-means(upāya-kauśalya 8) resolution(praṇidhāna 9) strength (bala) 10) knowledge(jñāna)


The major Jain text, Tattvartha Sutra mentions Das-dharma with the meaning of "ten righteous virtues". These are forbearance, modesty, straightforwardness, purity, truthfulness, self-restraint, austerity, renunciation, non-attachment, and celibacy.


वृषो हि भगवान्धर्मस्तस्य यः कुरुते ह्यलम् । वृषलं तं 

विदुर्देवास्तस्माद्धर्मं न लोपयेत्


जो सब ऐश्वर्यों के देने और सुखों की वर्षा करने वाला धर्म है उसका लोप करता है उसी को विद्वान् लोग वृषल अर्थात् शूद्र और नीच जानते हैं इसलिए, किसी मनुष्य को धर्म का लोप करना उचित नहीं ।


धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः । तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्


मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश, और रक्षित किया हुआ धर्म रक्षक की रक्षा करता है इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले । 

  जो पुरूष धर्म का नाश करता है, उसी का नाश धर्म कर देता है, और जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी धर्म भी रक्षा करता है । इसलिए मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले, इस भय से धर्म का हनन अर्थात् त्याग कभी न करना चाहिए ।


यत्र धर्मो ह्यधर्मेण सत्यं यत्रानृतेन च । हन्यते प्रेक्षमाणानां हतास्तत्र सभासदः ।


जिस सभा में बैठे हुए सभासदों के सामने अधर्म से धर्म और झूठ से सत्य का हनन होता है उस सभा में सब सभासद् मरे से ही हैं । 

जिस सभा में अधर्म से धर्म, असत्य से सत्य, सब सभासदों के देखते हुए मारा जाता है, उस सभा में सब मृतक के समान हैं, जानों उनमें कोई भी नहीं जीता ।



अधर्म

The principal Sufi organisation in the country is the Barelvi seat of Ala Hazrat. Check its guiding principles in the 30 volumes of Fataawa i Razvia. It is nothing but extreme exclusivity and hate for the Kafir. Even has them grouped as ‘nafrat ke ahkam’

https://en.wikiquote.org/wiki/Ahmed_Raza_Khan_Barelvi




  The biggest comedy show on earth

  According to some people nafrat ke ahkam is a philosophy and the sciences

  मुझे लगता हे यहाँ  टेरर फिलोसोफी  होना चाहिए . और ये अकल के अंधे को Science वर्ड कहा से पता लगा वो समज में    नहीं आ रहा हे