मेरे पिछले 15 वर्षों के अनुभव और अवलोकन के अनुसार, यूरोप और अफ्रीका के छोटे देशों में, साथ ही कई छोटे टापुओं पर, सबसे पहले इस्लामिक स्टेट (ISIS) जैसे जेहादी संगठन पहुँचते हैं। वे वहाँ शुरू के 1–2 वर्षों में अपनी आबादी को बढ़ाते हैं। इसके बाद उन क्षेत्रों में खतरनाक स्तर के अपराध शुरू हो जाते हैं। ये अपराध जानबूझकर किए जाते हैं ताकि वे उस देश, क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान आकर्षित कर सकें।
जब ये घटनाएं बढ़ती हैं, तो वहाँ की स्थानीय जनता इनके खिलाफ हो जाती है। फिर ये जेहादी तत्व उस विरोध को "इस्लाम के खिलाफ साजिश" के रूप में प्रचारित करते हैं और धीरे-धीरे सोशल और पॉलिटिकल कैंपेन शुरू करते हैं। इन घटनाओं को सीरिया, ईरान, इराक जैसे देशों में यह दिखाने के लिए प्रस्तुत किया जाता है कि "देखो, पूरी दुनिया इस्लाम के खिलाफ है।"
फिर इन संगठनों के भीतर कुछ प्लांटेड लोग तीन समूहों में बँट जाते हैं:
1. एक समूह "अच्छे मुसलमान" के रूप में सामने आता है।
2. दूसरा समूह सीधा हमला करने वाला होता है।
3. तीसरा समूह 'एक्स-मुस्लिम' (Ex-Muslim) बनने का नाटक करता है।
ये तथाकथित 'एक्स-मुस्लिम' कुरान जलाते हैं, इस्लाम के खिलाफ बोलते हैं और ऐसा दिखाते हैं मानो वे इस्लाम को छोड़ चुके हैं। लेकिन वास्तव में वे भी उसी जेहादी संगठन के सदस्य होते हैं। इनका उद्देश्य होता है दुश्मन पक्ष में घुसपैठ करना।
जब दूसरे धर्म के लोग इन 'एक्स-मुस्लिम' को समर्थन देते हैं, तो ये जेहादी तत्व इसका इस्तेमाल यह दिखाने के लिए करते हैं कि "देखो, बाकी धर्मों के लोग 100% हमारे खिलाफ हैं।" इस तरह वे अपने प्लांटेड व्यक्ति को दुश्मन की टीम में स्थायी रूप से शामिल कर देते हैं।
इनका वह व्यक्ति अब यह विश्लेषण करता है कि दुश्मन में कौन-सा समूह कितना ताकतवर है, कौन-से व्यक्ति का क्या प्रभाव है, उनकी क्या रणनीति है, आदि। जब इस तरह की घटनाओं के वीडियो — जैसे कि कुरान जलाने वाले वीडियो — सामने आते हैं, तो ये लोग विशेष अधिकार, नियम, और राजनीतिक स्थिति की माँगों को लेकर प्रदर्शन शुरू कर देते हैं।
इस प्रकार, राजनीतिक संघर्ष और माँगें उठाने के लिए ये 'एक्स-मुस्लिम' जैसे पात्रों को यूरोप या छोटे द्वीपों पर भेजा जाता है और उनका पूरा समर्थन किया जाता है।
*सलमान मोमिक, **नाज़िया इलाही ख़ान, और यहाँ तक कि **रुबिका लियाकत* — इन सभी के व्यवहार, वक्तव्य और सामाजिक प्रस्तुतियों को देखकर मुझे लगता है कि इनका रोल केवल विचार व्यक्त करना नहीं, बल्कि जनता की मानसिक दिशा को नियंत्रित करना है। ये लोग एक बड़ी रणनीति का हिस्सा नज़र आते हैं। चाहे वो किसी पक्ष में दिखें या विपक्ष में — असल भूमिका लोगों के बीच भ्रम और विभाजन पैदा करना है।
अब बात करें हिंदुओं की — तो जो भी मुसलमानों के खिलाफ थोड़ा भी बोलता है, हिंदू समाज के कुछ वर्ग तुरंत खुश हो जाते हैं। असल में, हिंदू व्यक्ति अपने परिवार, मित्र और सामाजिक नेटवर्क में मान्यता चाहता है।
*ये व्यक्ति की आंतरिक मानसिक स्थिति दर्शाता है। क्योंकि हिंदू के लिए लड़ने वालों का विरोध करने वाले लाखों लोग होते हैं, और अपनों का विरोध सालों से देखने के बाद इंसान की आंतरिक मनःस्थिति वैसी हो जाती है कि कोई भी ज़रा सा उनके पक्ष में बोले तो वह बहुत अच्छा लगने लगता है।*
उनकी मानसिक स्थिति यह बन चुकी है कि कोई भी अगर ज़रा जोर से "जय श्री राम" बोल दे तो उन्हें अत्यंत संतोष मिलता है।
और इनके मरने के बाद भी कई हिंदू इन्हें अच्छा बताकर इनके प्रशंसक बन जाते हैं, मानसिक स्तर पर। और इनके गुणगान करने लगते हैं। इसका नतीजा क्या होता है? एक आज का लड़ने वाला हिंदू, पिछले 1000 वर्षों से लड़ते आ रहे वीर हिंदुओं को अपने मन और चेतना में स्थान नहीं दे पाता, लेकिन एक जिहादी को वह अपने मन और चित्त में जगह दे बैठता है।
और जब मन, चित्त और अवचेतन स्तर पर इस प्रकार के लोगों की छाप गहराने लगती है, तो इससे कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकलते हैं:
1. समाज के भीतर यह धारणा बनने लगती है कि — "हाँ, इन्हें स्वीकार किया जा सकता है।"
2. धीरे-धीरे यह सोच पनपती है कि — "इन्हें भी सुधारा जा सकता है।"
3. उनके खिलाफ कोई कठोर प्रतिक्रिया, जैसे कि 'सांस्कृतिक या वैचारिक सफ़ाया', उसे भी अस्वीकार्य माना जाने लगता है।
4. परिणामस्वरूप, चर्चा का केंद्र बिंदु पुस्तकों, दर्शन, राजनीति, रोज़गार और शिक्षा जैसे अपेक्षाकृत 'सॉफ्ट' और शांति-प्रिय क्षेत्रों की ओर मोड़ दिया जाता है, जबकि मूल वैचारिक और ऐतिहासिक प्रश्नों को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
मेरी आशंका और धारणा है कि वर्तमान में जो कुछ हो रहा है, वह एक बहुत ही गहरा और सुनियोजित खेल है।
जिस तरह से ऐतिहासिक 'Vikings' में दिखाया गया कि किस प्रकार राजा और उसकी सेना ही धर्म परिवर्तन कर लेते हैं और अपनी प्रजा को भ्रम में रखते हैं — कुछ वैसा ही परिदृश्य आज भारत में भी देखने को मिल रहा है।
मुझे ऐसा लगता है कि अवैध रूप से देश में रह रहे लोगों को वैध बनाने की एक सुनियोजित रणनीति चल रही है।
बीजेपी सरकार द्वारा इन सभी अवैध लोगों की जनगणना या पहचान की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन उद्देश्य इन्हें देश से निकालना नहीं, बल्कि इन्हें भारत का स्थायी नागरिक बनाना हो सकता है।
सरकार दिखावे के तौर पर यह जताएगी कि वह इन अवैध घुसपैठियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना चाहती है, परंतु जब मामला अदालत में जाएगा (जैसा कि मुस्लिम पक्ष कर सकता है), तो वह वर्षों तक खिंचेगा। अंततः अदालत यह कहेगी कि इन्हें कानूनी सुविधाएं दी जाएं। फिर सरकार और उससे जुड़े संगठन अदालत के आदेश का बहाना बनाकर इन घुसपैठियों को कानूनी मान्यता दे देंगे — और एक बार फिर हिंदू समाज को भ्रमित किया जाएगा।
स्थिति यह होगी कि एक तरफ़ झुग्गियां तोड़ी जाएंगी और मीडिया में दिखाया जाएगा कि सरकार कार्रवाई कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ़ उन्हीं लोगों को सरकारी फंड से लाखों की सहायता दे दी जाएगी।
इस तरह से, नाटक जारी रहेगा — कार्रवाई का दिखावा होगा, कोर्ट केस की आड़ में कानूनी सहायता दी जाएगी, और अंततः आम जनता को सच का पता ही नहीं चलेगा।
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