Thursday, 3 April 2025

मूर्खता, डेटा और गलत विश्लेषण

 

एक समय की बात है, एक गाँव में एक नया मदरसे में पढ़ा हुआ मौलाना आया, जो कहता था कि वह बहुत बड़े शहर के मशहूर मदरसे से तालीम हासिल करके आया है और उसके पास हर चीज का विश्लेषण करने की गहरी समझ है। गाँव के लोग उसकी बातों में आ गए और उससे हर तरह के सवाल पूछने लगे।

गलत विश्लेषण की शुरुआत

एक दिन, गाँव में एक आदमी ने पूछा – "मौलाना साहब, हमें बताइए कि लोग हाथी को क्यों पसंद करते हैं?"

मौलाना साहब ने अपनी हदीस और फिकह की किताबों में जवाब ढूंढना शुरू किया और एक हवाल देते हुए बोले –
"एक रिसर्च में यह पाया गया है कि जिन लोगों को हाथी पसंद होता है, उनके बचपन में कोई न कोई दु:खद घटना घटी होती है, खासकर कोई अपराध।"

गाँव के कुछ लोग यह सुनकर चौंक गए, कुछ सोच में पड़ गए, लेकिन तभी वहाँ पास बैठे गुरुकुल में पढ़े हुए एक ब्राह्मण गुरु, उनके मित्र और उनका एक क्षत्रिय शिष्य खड़े हो गए।

धर्म की रक्षा का स्वर

ब्राह्मण गुरु ने गंभीर स्वर में कहा –
"यह व्यक्ति तो उसी परंपरा से है जो इतिहास को तोड़-मरोड़कर, अधर्म को ज्ञान कहकर फैलाते हैं और फिर अपने वंशजों को वही झूठ और अधर्म देकर इस धरती पर चलाते हैं।"

"इनकी बातें भ्रम और अधर्म को जन्म देती हैं। यह विश्लेषण नहीं, बल्कि समाज को भ्रमित करने की चाल है।"

डेटा और मूर्खता का रिश्ता

फिर क्षत्रिय शिष्य आगे बढ़कर बोला –
"अगर कोई कहे कि आज 80% लोगों ने लौकी की सब्जी खाई और आज बाजार गिर गया, तो क्या लौकी बाजार गिराने का कारण बन गई? नहीं, यह केवल आकड़ा है, कारण नहीं।"

ब्राह्मण गुरु बोले –
"अगर तुम पहले से ही अज्ञानी हो, तो कोई भी विश्लेषण प्रणाली या तकनीक तुम्हें बुद्धिमान नहीं बना सकती। बिना विवेक के ज्ञान भी विनाश ला सकता है।"

ज्ञान और मूर्खता की असली पहचान

गुरु बोले –
"जितना अधिक एक मूर्ख पढ़ता है, उतना ही अधिक वह भ्रम फैलाता है। अगर पहले ही उसका मन स्थिर, सत्यप्रिय और बुद्धिमान नहीं है, तो वह केवल अधूरे ज्ञान का प्रचारक बन जाता है।"

"आज के युग में इंटरनेट पर लाखों अच्छी किताबें उपलब्ध हैं, लेकिन जो जैसा होता है, वह वैसी ही किताब खोजता है और उसी को पढ़कर उसका अनुसरण करता है।
"उसी तरह, पहले के ज़माने में भी लाखों अच्छे ग्रंथ और गुरुकुल उपलब्ध थे, लेकिन जिनका माहौल और मन पहले से ही दूषित होता था, वे ही मदरसों में जाते थे।
"फिर वे वहीं से पहले से ही गलत लोगों को आदर्श मानते हुए अपना पूरा जीवन मानसिक रोग जैसी गलत विचारधारा पढ़ने में बर्बाद कर देते थे और आगे भी वही मानसिक रोग समाज में फैलाने में अपना जीवन व्यर्थ कर देते थे।"

शिक्षा:

ज्ञान तभी फलदायक है जब वह विवेक और धर्म के साथ हो। अन्यथा वही ज्ञान अधर्म का रूप ले सकता है। केवल पढ़ना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि कौन पढ़ रहा है, किस भावना से पढ़ रहा है, और किस दिशा में उपयोग कर रहा है – यही सबसे बड़ा अंतर बनाता है।

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