Friday, 13 December 2024

किसी भी घटना का अचानक होना नहीं होता – एक चैन रिएक्शन होता है

 

किसी भी घटना का अचानक होना नहीं होता – एक चैन रिएक्शन होता है

कोई भी घटना कभी भी अचानक से नहीं होती, वह हमेशा एक चैन रिएक्शन में होती है। केवल हमारा ध्यान नहीं होता उस पर और वह हमारे सामने होने के बावजूद हम उसे नजरअंदाज कर देते हैं। इसी वजह से हमारे धर्म के एपिस्टेमोलॉजी ( ज्ञानमीमांसा, Epistemology) में अज्ञानता (ignorance) के ऊपर बहुत गहरा प्रभाव और महत्व दिया गया है।

कोई भी देश हो, जैसे सीरिया हो, बांग्लादेश हो या भारत हो, हमारे लोग जो भी हो रहा है, उसे समझने की बजाय पार्टी करने में व्यस्त हैं। और जब भी दुश्मन पूरे मूड में हमला करेगा, तो हम कहेंगे कि सब अचानक से हो गया। लेकिन यह अचानक केवल उनके लिए है जो जागरूक नहीं हैं, जो जागरूक हैं, उनके लिए तो यह पहले से पता था और वे तैयार भी थे।और जिन लोगों को लगता है कि यह अचानक हो गया, और अगर आप इन लोगों में से हैं तो समझो आप उस क्षेत्र के लिए तैयार नहीं हो।

जैसे कि ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और कोई भी घटना हो, चाहे वह बांग्लादेश की हो, सीरिया की हो, या अमेरिका का अफगानिस्तान को छोड़कर जाना हो। कुछ भी अचानक नहीं होता।


वैश्विक घटनाओं के उदाहरण: जो अचानक नहीं होते, बल्कि लंबे समय से चलते हैं

1. ISIS का उदय (Middle East)

  • लोग क्या सोचते हैं: 2014 में अचानक ISIS ने इराक और सीरिया के बड़े हिस्सों पर कब्जा कर लिया, और यह सब बहुत चौंकाने वाला था।
  • असल में क्या हुआ: ISIS का उदय अचानक नहीं था। यह कई वर्षों की अस्थिरता और मध्य-पूर्व के संघर्षों का परिणाम था, विशेष रूप से इराक युद्ध (2003) और सीरियाई गृहयुद्ध (2011)। शिया और सुन्नी के बीच संघर्ष पिछले 1000 वर्षों से चल रहा है और यह एक इस्लामिक आंतरिक मुद्दा है जो हर देश में पिछले 1400 वर्षों से जारी है। इराक में शिया और सुन्नी के बीच हिंसा और संघर्ष बढ़ते गए थे, जिसने ISIS जैसे उग्रवादी समूहों को बढ़ावा दिया। ISIS का जन्म अल-कायदा से हुआ था, और इस्लामिक दुनिया में मौजूदा आंतरिक तनाव और असंतुलन ने इस समूह को ताकतवर बनाया।
2.  2014 यूक्रेनी क्रांति और क्रीमिया का विलय
  • लोग क्या सोचते हैं: 2014 में यूक्रेनी क्रांति और रूस द्वारा क्रीमिया का विलय अचानक हुआ था।
  • असल में क्या हुआ: 2014 की क्रांति, जिसे Euromaidan के नाम से भी जाना जाता है, लंबे समय से बढ़ती असंतोष का परिणाम थी। यूक्रेनी राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच की यूरोपीय संघ के साथ असोसिएशन समझौते पर हस्ताक्षर से इनकार करने के कारण बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। हालांकि, यूक्रेन कई वर्षों से राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा था, जिसमें पश्चिमी यूरोपीय और रूसी समर्थक क्षेत्रीय असहमति प्रमुख थीं। क्रीमिया के विलय और पूर्वी यूक्रेन में संघर्ष अचानक नहीं थे, बल्कि यह रूस की यूक्रेन के भू-राजनीतिक महत्व के लिए लंबे समय से चली आ रही योजनाओं का परिणाम थे।

Wednesday, 11 December 2024

नई पीढ़ी के लोग जब अपने इतिहास, भौगोलिक मूल्यों और धर्म से लंबे समय तक 100% डिसकनेक्ट हो जाते हैं, तो क्या होता है?

 नई पीढ़ी के लोग जब अपने इतिहास, भौगोलिक मूल्यों और धर्म से लंबे समय तक 100% डिसकनेक्ट हो जाते हैं, तो क्या होता है?

वे स्वयं ही अपने आप के दुश्मन बन जाते हैं।

मूल धर्म सत्य और असत्य है। अगर आपको दिख रहा है कि आपके पूर्वज 100% खराब और बुरे ही थे और उनके द्वारा बनाए गए सभी ढांचे 100% खराब ही हैं, तो आपको नई और अच्छी सोच को अपनाना चाहिए। लेकिन मानव अपने बचपन से सिखाए गए ढांचे को छोड़ने का साहस नहीं कर पाता। और हमारे निष्क्रिय और कायर अच्छे लोगों ने बुरे लोगों को 100% समाप्त भी नहीं किया, यह भी एक बहुत बड़ी गलती है।

आज जो भी बुरे लोग हैं, वे जन्म से ही बुरे लोगों की संतान हैं। उनका पूरा वातावरण, शिक्षा और आदर्श लोग ही सबसे बुरे हैं। ऐसे मामलों में, वे अपने आप में एक बुरा जानवर हैं। अब कोई भी जानवर अपने आप को तर्कपूर्ण रूप से बुरा कैसे स्वीकार करेगा?

यह तो ऐसा ही उदाहरण है कि हम सुअर को बुरा कहते हैं और चाहते हैं कि सुअर खुद स्वीकार करे कि "हाँ, मैं गटर में रहता हूँ, तो मैं खराब हूँ।" जबकि कीचड़ में रहना तो उसके लिए फायदेमंद है और वही उसका डिफॉल्ट नेचर है।

हमने लंबे समय तक बुरे लोगों को पनपने दिया, और बुराई पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित भी रही और और भी मजबूत होती गई। अब यह एक पूरी नई खराब प्रजाति जैसी बन गई है। आप इन्हें सुधारना नामुमकिन है। इनके आदर्श, इनकी किताबें, इनकी सभी चीजें मानवता और हिंदुओं (सनातनियों) से 100% विपरीत हैं।

यह तो बात हो गई जिहादी कौम की।

चलो, मैं आपको मेरे ही जीवन में देखा हुआ एक उदाहरण देता हूँ।

मैं एक यूके की कंपनी में सॉफ़्टवेयर इंजीनियर के रूप में फ्रीलांस डेवलपर था। मेरे साथ 30-40 और डेवलपर थे जो कि यूक्रेन के थे। जब 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था, तो वहाँ के 20-30 साल के युवा लोग Microsoft Teams और Slack पर रोने लगे थे और उस रिश्ते से सहानुभूति ले रहे थे।

जबकि सहानुभूति लेने से कुछ भी नहीं होने वाला। कई लोग यूक्रेन से भाग गए और पोलैंड और यूके में जाकर सेट हो गए। बाकी अभी भी जॉब कर रहे हैं।

अब मैं देख रहा हूँ कि पूरा देश बर्बाद हो रहा है और यूक्रेन के नौजवान $5 के लिए यूके की कंपनियों की वेबसाइट डिज़ाइन कर रहे हैं और पुतिन और रूस को गालियाँ दे रहे हैं। जबकि इन लोगों को NATO, यूक्रेन, रूस का कुछ भी इतिहास पता नहीं है।

वे पिछले 30 सालों से केवल पार्टी करने में लगे थे। अब इन्होंने एक कॉमेडियन को राष्ट्रपति बना दिया। कॉमेडियन किसी के बहकावे में आ गया या उसकी खुद की विचारधारा ये रही होगी कि NATO में शामिल हो जाएँ।

अब ये अमेरिका ने किया, कॉमेडियन ने किया, NATO ने किया, या फिर यूक्रेन के ये पार्टी करने वाले लोगों ने किया। जो भी कहो, लेकिन रूस ने तो उसका जवाब दे दिया।

और अब ये लोग लड़ने की जगह ब्लेम थ्योरी और सैलरी लेने बैठे हैं। ऐसी पीढ़ी चाहे कितनी भी संपत्ति क्यों न कमा ले, तीन पीढ़ियों से ज्यादा नहीं चलती। वे अपने आप समाप्त हो जाती हैं।

जब पीढ़ी को अपना भौगोलिक, दुश्मन और इतिहास पता नहीं होता, तो सब कुछ हो जाने के बाद भी वे न तो सत्य तक पहुँच सकते हैं और न ही कुछ कर सकते हैं। उनका तर्कसंगत रूप से पतन तय हो चुका होता है।

विचारधारा और कार्यनीति का महत्व

 

विचारधारा और कार्यनीति का महत्व: एक विश्लेषण

आज की दुनिया में विचारधारा और उसे आगे बढ़ाने की कार्यनीति का महत्व अतुलनीय है। चाहे वह गलत दिशा में कार्यरत समूह हों या किसी सकारात्मक लक्ष्य के लिए संघर्ष कर रहे संगठन, उनकी सफलता उनकी विचारधारा की गहराई और कार्यनीति की मजबूती पर निर्भर करती है। इसका एक स्पष्ट उदाहरण कट्टरपंथी विचारधारा वाले संगठन हैं, जो अपने उद्देश्य को पाने के लिए न केवल विचारों का प्रचार करते हैं, बल्कि अपने कार्य को प्रभावी बनाने के लिए हथियारों और रणनीतिक ढांचे का भी सहारा लेते हैं।

गलत दिशा में कार्यरत संगठन से सीखने की आवश्यकता

जहां तक जिहादी समूहों का सवाल है, उनके विचारों और उद्देश्यों का हर कोई विरोध करता है। उनकी विचारधारा मानवता और शांति के विपरीत है। लेकिन उनकी कार्यप्रणाली और रणनीति का विश्लेषण हमें सिखा सकता है कि किस तरह अपने लक्ष्यों के लिए समर्पण और दीर्घकालिक योजना बनाई जाती है। जिहादी अपने विचारों को धरातल पर लागू करने के लिए विचारधारा और हथियार दोनों का सहारा लेते हैं। यह रणनीतिक सोच हमें सिखाती है कि एक मजबूत और संगठित ढांचा कैसे तैयार किया जा सकता है।

वर्तमान उदाहरण: बांग्लादेश की रणनीति

बांग्लादेश में जिहादी खुलेआम यह स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं कि बंगाल, बिहार और ओडिशा उनके हिस्से हैं और वे इसे लेकर रहेंगे। यह एक गंभीर चुनौती है। जहां हमारे राष्ट्रवादी इसे महज एक मूर्खतापूर्ण विचार समझकर नजरअंदाज कर रहे हैं, वहीं जिहादी इसे अगली दो पीढ़ियों के लिए एक स्थापित सत्य बनाने में जुटे हुए हैं।

अगले 40 वर्षों में, उनकी यह विचारधारा बंगाल की नई पीढ़ियों के दिमाग में गहराई तक स्थापित हो जाएगी कि ये क्षेत्र वास्तव में उनके हैं और उन्हें वापस लेना उनका अधिकार है।

हिंदू समाज और उसकी कमजोरियां

हमारे समाज में ऐसे कई लोग हैं जो इन खतरों को समझने में असमर्थ हैं।

  1. राजनीतिक नेतृत्व की निर्भरता: लोग सोचते हैं कि मोदी या कोई अन्य नेता हर समस्या का समाधान करेंगे। परंतु यह मानसिकता कमजोर है। नेतृत्व को केवल योजनाएं बनाने और मार्गदर्शन देने की जिम्मेदारी होनी चाहिए, जबकि समाज और योद्धाओं को कार्यान्वयन का बीड़ा उठाना चाहिए।

  2. सेना की सीमाएं: हमारी सेना में अद्भुत योद्धा हैं, लेकिन वे भी केवल राजनीतिक आदेशों तक सीमित हैं। वास्तविक लड़ाई योद्धा लड़ते हैं, न कि वे लोग जो केवल तनख्वाह और पेंशन पर निर्भर हैं।

  3. समाज का निष्क्रिय समर्थन: हमारे समाज में ऐसे लोग हैं जो केवल भाषण देने या अति उत्साही होकर योजनाओं की बातें करते हैं। वे न तो जमीनी स्तर पर सक्रिय होते हैं और न ही कार्य को अंजाम देते हैं।

वर्तमान समय की सामाजिक प्रवृत्ति

मैंने देखा है कि 2014 के बाद से अचानक ही बहुत से लोग राष्ट्र और धर्म के बारे में विचार करने लगे हैं। लेकिन उनसे बात करते ही यह स्पष्ट हो जाता है कि यह एक नया रुझान है। ये लोग अपने जीवन के पहले 30-35 साल कुछ भी नहीं करते, और अचानक किसी क्षेत्र में प्रवेश कर 4-5 साल में खुद को विशेषज्ञ मानने लगते हैं।

2014 से पहले कई लोग ऐसे थे जिनके लिए भारत का कोई महत्व नहीं था और भारत का इतिहास उनके लिए कुछ भी नहीं था। वे पूरी तरह से नकारात्मक और निराशावादी थे। लेकिन अब जो नए लोग आ रहे हैं, वे 100% अति-प्रेरित हैं और मानते हैं कि भारत और भारत का इतिहास ही सर्वश्रेष्ठ है। उनके लिए बाकी सभी देश और समाज तुच्छ हैं। यह अत्यधिक अतिरेक भी नुकसानदायक है।

इस प्रकार, जो लोग पहले भी राष्ट्र और धर्म को नुकसान पहुंचा रहे थे, वे अब अति-प्रेरित और कार्यहीन होकर भी नुकसान ही कर रहे हैं। इनके लिए वास्तविकता का कोई महत्व नहीं है। अतिसार्वत्र वर्जयते (अति हर चीज की हानिकारक होती है) इन पर पूरी तरह फिट बैठता है।

समाधान: एक सशक्त विचारधारा और संगठन

  1. यथार्थवादी दृष्टिकोण: किसी भी समस्या का समाधान अति उत्साह या निराशा से नहीं होता। हमें एक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना होगा।

  2. दीर्घकालिक रणनीति: जिहादी समूहों की तरह हमें भी 40-50 वर्षों की दीर्घकालिक योजना बनानी होगी। विचारों को स्थापित करने और समाज में एक मजबूत ढांचा तैयार करने पर ध्यान देना चाहिए।

  3. युवा पीढ़ी को शिक्षित करना: नई पीढ़ी को सही इतिहास और संस्कृति की शिक्षा देना आवश्यक है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि वे अपनी जड़ों से जुड़े रहें और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें।

  4. संगठन और कार्य: समाज को संगठित करना और उसे कार्य में लगाना बेहद जरूरी है। केवल भाषण देने या योजनाएं बनाने से कुछ नहीं होगा। जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन होना चाहिए।

निष्कर्ष

कट्टरपंथी विचारधारा और गलत दिशा में कार्यरत संगठन हमारे समाज के लिए गंभीर खतरा हैं। लेकिन उनके ढांचे और कार्यनीति का विश्लेषण करके, हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रभावी रणनीति बना सकते हैं।

हमें यह समझना होगा कि केवल सेना, नेता या राजनीतिक प्रणाली पर निर्भर रहकर हम कुछ हासिल नहीं कर सकते। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। एक संगठित, शिक्षित और जागरूक समाज ही किसी भी चुनौती का सामना कर सकता है।